मंगलवार, मई 31, 2016

fb times / प्रथम अंक

1.                रचनाकार अपनी रचना पर अपना अधिकार ,अपना नाम चाहता है ,इसलिए वह 'कॉपी  राईट एक्ट " को समर्थन देता है  fb पर 'कॉपी पेस्ट' एक्ट काम करता है !
__________________________________________________________



______________________________________________
” क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?’
शिष्य कुछ देर सोचते रहे ,एक ने उत्तर दिया, ” क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !”
” पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है , जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं “, सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया .
कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए .
अंततः सन्यासी ने समझाया …
“जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं . और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते ….वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा.
क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं , क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं , उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है.”
सन्यासी ने बोलना जारी रखा ,” और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं , वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं.”


___________________________________
1 जून 2016 

फ़ेसबुक पर तमाम मित्र कुछ  ऐसी चुटकुले बाज़ी करते हैं कि आप बरबस ही मुस्कुरा दें ,जैसे आज -----------------

मुझे तो बस इतना ही काफी लगा की बस - "इनसान ही कमाता है :)"



आज fb की न्यूज़  फ़ीड पर इसे तीन अलग -अलग लोगों ने post किया . 
ऐसे में मुझे एक सबक़ मिला कि .....frndlist में तीन में से एक ही रखा जाए.
जो सच्चा है ,वही अच्छा है !





हर ज़ुल्म तेरा याद है....









my e-book: माँ / अस्वीकार क्या कहूँ ....:



  करता है ज़ुर्म छुपकर , गुनहगार क्या  कहूँ !
 सुबूत के अभाव में सच जाता है हार क्या कहूँ !


सोमवार, मई 30, 2016

वो मौसम है ....






मेरे  दिल का टुकड़ा ही , मुझको छलता है !
जैसे कोई  मौसम है , जो रोज़  बदलता है !

इक  गुनाह  माफ़ करती हूँ , आह भूलकर !
 और इक  को भूल जाती हूँ , चाह  भूलकर !

पर वो  बदगुमान  इस कदर हो गया  है !
जिसे दिया था  जनम ,  वो  खो गया है !

__________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति





रविवार, मई 29, 2016

नायरा और रूही ..... कब करेंगी माँ की इज्जत ?

      सच पूछिए तो हमारे tv सीरियल कम्म्मम्म्माल  के हैं . किरदार उनमें काम करते -करते ही बड़े हो जाते हैं उनकी एक छवि बन जाती है . सालों -साल चलने वाले ये टीवी सीरियल हमारी बोर होती बहू - बेटियों को घर में उलझाए रखते  हैं . मैं कलर्स की  आनंदी या ज़ी की सिमरन की या ज़िंदगी की फेरिहा या ....... की बात फ़िलहाल नहीं करुँगी ! नहीं करुँगी उड़ान की चकोर या दिया -बाती की संध्या या किसी भी ' सुहानी 'सी लड़की की या धरा की ......omg / मुझे कितने सारे नाम याद हो गए ! मैंने कितना वक्त जाया कर दिया टीवी पर , मुए इन सीरियल वालों का सत्यानाश हो :)
_________________ नायरा और रूही कुछ महीनों पहले तक तो ठीक थीं ! सबकी चहेती वो आज भी हैं ! पर उनकी माँ उनके लिए परेशान हैं ! वो अपनी माँ से अब नफ़रत कर रही हैं ! और उन्हें देखकर आपकी बेटी क्या सीख रही है ?
____________________ यही की आगरा  थाने पर एक माँ ने शिकायत दर्ज़ करवाई की उसकी बेटी उसके नियन्त्रण में नहीं ! तब मुझे बेटी के पिता का खयाल नहीं आया ! क्या वो सावधान इण्डिया में डूबा होगा ? ये बात अभी खत्म नहीं हुई ,वक्त आज का खत्म हुआ है ! इस post को edit करते समय मैं सीरियल के नहीं हक़ीकत  के कुछ प्रमाण चस्पा करूंगी ! फ़िलहाल इस कहानी को यूँ ही बहने दें ....हवा की तरह , नदी की तरह नहीं :)
__________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति







गुरुवार, मई 26, 2016

आज नहीं...













_______________________________________________
बो दिए हैं  बीज मैंने, 
उगाउंगी  मैं ही फ़सल !
फूल फल नज्र सबको ,
आज नहीं कल ,कल !
_________________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति




बोती हूँ शब्द ....











गुज़रे  यूँ  ज़िन्दगी के 
  बरस ,माह और पल  !
  सौ  बार गिरे गर तो ,
सौ बार गए सम्हल !

गम और ख़ुशी जैसे 
पर्याय  हो  गए हैं !
अश्रु हंस दिए  हैं ?
या ख़ुशियाँ हैं विकल ?

सतत बो रही हूँ शब्द ,
उग रही  हैं ग़ज़ल !
गीत ,कथा ,छंद सब 
 है अर्थों  की फ़सल !

धूप कई  ख्वाबों  की ,
कई रिश्तों की बारिश !
तज़ुर्बों की जमीं पर ,
 कई मौसम  गए बदल !

कुछ गीत  खिल  गए ,
मुक्तक बिखर  गए !
जिंदगी की किताब से ,
कई पन्ने  गए  निकल !

जोड़ गुणा भाग किया 
घट  गया सब  कैसे ?
सिफ़र लिए  हाथों में 
आँखों में लिए जल !

शब्द  मूक  हो गए ,
अर्थ वाचाल ,विकल !
सौ समस्या चाहती हैं 
बस हो एक ही हल !

बातों  के  भँवर  हैं, 
गुस्ताख़  हैं अदब !
कुछ बदगुमान मैं हूँ ,
इबारतों के शगल !

बो दिए हैं  बीज मैंने, 
उगाउंगी  मैं ही फ़सल !
फूल फल नज्र सबको ,
आज नहीं कल ,कल !
_________________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति


शुक्रवार, मई 20, 2016

मुझे मालूम है ...मेरे फ़राइज़ क्या हैं ....

__________________________

झूठ  या सच
....................... 
दोनों से बच !
__________________ देखने  में यूँ लगता है जैसे मैं हाइकू लिखने में असमर्थ हूँ :) बीच  की लाइन जो गायब  है ! वहां के सात  वर्ण  कहाँ  हैं ? क्यूँ  मौन  पसरा  है सच और झूठ के बाद ? 
_________________ ये  बात तो वही बताए जो तीनों ही से गुजरा हो ! अर्थात  ...... यहाँ मेरा  मक़सद  सिर्फ़  ख़ुद  के आगे  ख़ुद  को ज़ाहिर  करना  होता तो मैं  सिर्फ़  ' मौन ' की  बात करती . उस  'मौन ' की जिसे  मैंने बड़ी ईमानदारी और  हिम्मत  से  जिया . एक लम्बे अरसे  का मौन . जिसे  मैनें  ख़ुद चुना  था . यदि  कोई  भी  फ़ैसला ,मज़बूरी में  लिया  जाए तब ईमानदारी  पर  प्रश्न उठाए  जा  सकते  हैं .और  जब  फ़ैसलों  पर  सवाल  उठने  लगें  तब लौटना  पड़ता  है   - पीछे  की  तरफ़ . तभी  हम  आगे  का सफ़र तय कर  सकते  हैं . यानि जो  भी योजना  हो उसपर  अमल से  पहले उसके परिणाम  के बारे में विचार  किया जाना ज़ुरूरी  है ---- " बिना  विचारे जो करे .... 
__________ तब  ? हम  विचार  क्यूँ  नहीं  करते ? कहाँ  गई  हमारी चिंतनशील   प्रवृत्ति ? हम  कैसे  ध्यान से  विमुख  हो  गए ? हम  भेड़चाल  से  कभी तो उबेंगे ! तब ?आज mob .और tv ने हमारे मुंह - कान -आँख पर  जो  कब्ज़ा  किया  हुआ है , परोक्ष रूप से अतिक्रमण   दिमाग और  दिल पर  हुआ  है ! सोच और समझ पर  हुआ  है ! इस व्यस्तता और  वाचालता  ने सुविधा  के  नाम पर मुहैया इन उपकरणों  की उपयोगिता और आविष्कार  का  मज़ाक  उड़ाया  है !
________________ आज  हम  भले आँख  मूंद  लें कबूतर  की  तरह , तो  क्या बिल्ली  झपट्टा  नहीं  मारेगी ? अरे  हम  इनसान  हैं . हमारे  पास दिमाग  है . हमें  ख़ुद का भला -बुरा  सोचना होगा . उसके  लिए  वक्त  निकलना  होगा . भीड़  से  परे ....ख़ुद के  लिए ...औरों  के लिए ....समाज  के  लिए ,देश  और  राष्ट्र  के  लिए ! हम  हमेशा  परिकथा  से दिल  नहीं  बहला  सकते ! कब तक  तितली  के  पीछे  भागेंगे ?
___________ हमारे आर्य हमें  जो दिशा दे  गए उसमें  काल  के  मद्देनज़र  ज़रासे  संशोधन  की  ,नहीं  कुछ और add किये  जाने  की दरकार है ! पहल  हमे  करनी  होगी .....हम  जो अपनेआप  को समझदार  होने  के खोल  में छुपाए  बैठे  हैं ! हम  जो सिर्फ़  शिकायत  करना  जानते हैं ! हम जो कभी ख़ुद को कुसूरवार  नहीं  मानते ! लेकिन इस  बात  से अनजान कब तक रह पाएँगे ....एक  दिन  यही बच्चे हमें कुसूरवार  कहके  कटघरे  में  खड़ा  कर  देंगे की हमने उनको  दिया  क्या  है ? समझाया  क्यूँ  नहीं ? रोका   क्यूँ  नहीं ?   बताया  क्यूँ  नहीं ? 
___________________ तब  हमारे  पास ख़ुद को बरी  करने  के कितने प्रमाण हैं ?
___________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति 

मंगलवार, मई 17, 2016

gm frnds


_____________________________________

25 हाइकू





_____1_______

मन मयूर
उदास मज़बूर
बादल दूर
______2_________

शब्द रूठे हैं
कह रहे मुझसे
अर्थ झूठे हैं
______3____________

मधुर बात
सदा कह मुख से
रह सुख से
______4____________

हंसा - मुस्काया
उठ गया सोकर
गुलमोहर
_______5________________

चाँद कातिल
तारों का सरहाना
उसे हासिल
_______6________________

भोले शंकर
है क्रोध भयंकर
ॐ जपाकर
_______7________________

मै सीधी -सादी
तुम छल -प्रपंच
ये रंगमंच
________8_____________

आँखें देखतीं
ख़्वाब कितने सारे
बिना विचारे
_________9_______________

उसकी चाह
रोज़ देती दस्तक
मन की राह
__________10_____________
मन चन्दन
सुरभित जीवन
अभिनन्दन
___________11_________________
टूटते रहे
सितारे गगन में
मेरे मन में
____________12____________________

खत संदेश
बसे जाए विदेश
भिजवाते हैं
____________ 13__________

दरअसल
सच छुपता रहा
झूठ ने कहा
___________14__________

मैं तुम या वो
कविता का विषय
कुछ और हो
__________15_______

योग समाधि
जीवन मायाजाल
वार्धक्य व्याधि
_________16 ________

है तनहाई
अंतर भीड़ भरा
रूह गंवाई
________17 _______

जीवन चक्र
तन क्षुधा जरासी
मन सन्यासी
___________18 _________

आत्मा अमर
ये संसार समर
जीव नश्वर
___________19________

आर्यों ने दिए
संस्कार  के गहने
कौन पहने
___________20_________
इबादत में
हो आस्था समर्पण
जो आदत में
_________21______
मन का डर
नहीं छोड़ता पीछा
जीवनभर
_________22 ________

गूंजते रहे
विचारों के अंगना
गीत कंगना
__________23 _______

मनभावन
सारे रिश्ते पुराने
आए बुलाने
__________24________

नैन या सीप
रोज़ मोती बहाते
वो याद आते
__________25_________

शीशमहल
कैद राजकुमारी
विपदा भारी
____________________


__________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति


रविवार, मई 15, 2016

मेरा परिचय .....

नाम ---
पिता का नाम ___
जन्म स्थान---
पता  ____
जन्म तारीख ---
शिक्षा ----
व्यवसाय ---
उपलब्धि ----
अनुभव ----
अभिरुचि ----
अन्य /विशेष __



_________________________________________ या फ़िर
      

कन्या का नाम __
राशि __
गोत्र ___

.
.
.
____________ या फ़िर फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल में जो परिचय दिया जाता है ! जिसपर यकीन करना ना करना बराबर होता है !

____________ आज ज़ुरूरतन मुझे भी लिखना है " परिचय " .मेरे  खयाल से एक writer के नाते मेरा           अनौपचारिक   परिचय संक्षेप कुछ यूँ होना चाहिए____________




______fb और blog पर  मेरी शुरुआत " हाइकू " के साथ हुई !             
______ u tube पर मेरी कविताएँ सुनी जा सकती हैं ! 

______ वि.वि.से मुझे ' योग - विशेषग्य " की उपाधि प्राप्त है .
______ नईदुनिया , दैनिक भास्कर , नवभारत टाइम्स ,  राष्ट्रीय सहारा, संडे-मेल ने मेरे लेख ,कहानी और    कविताएँ प्रकाशित की हैं .
______ कादम्बिनी साहित्य महोत्सव में मुझ  कहानिकार को  पुरस्कृत किया गया है .
_______ हिंदी ,धर्म , दर्शन , योग , मनोविज्ञान , ज्योतिष मेरे अध्ययन के प्रिय विषय  हैं .
______ अपने नाम के "स्वाति " की स्पेलिंग " sowaty "  लिखती हूँ :)
___________________________ डॉ. प्रतिभा " स्वाति


शुक्रवार, मई 13, 2016

दिल ...दिमाग ...और हम













_____________________________________________________________
 दिमाग राजा है! दिल मंत्री!शरीर दास !

_____ये कौन कब ? किसलिए ? किस मन: स्थिति और मानसिकता में कह गया ! इस सोच को समझने की ज़ुरूरत है ! 
_____________________________________________________________________


 ____________________
 _______दिल  तो  बच्चे  की  मानिंद  है ! चाँद  की जानिब हाथ  फैलवा  ही देता है ! दिमाग  जानता  है , चाँद  की असलियत और इन्सान की औकात या हैसियत ! दिमाग कभी  चाँद नहीं मांगता ! जिसके  दिमाग ने चाँद  माँगा वो , चाँद तक पहुंचा . सारी  दुनिया इस सच से वाकिफ़  है 
________________________________

 ___________ गोया के ये तय किया जाना आसान  नहीं कि  दिल की माने या नहीं ? लेकिन  ये तय है की दिमाग  की मानी  जानी चाहिए . इसके  पीछे जो वजह  है ,निश्चय ही उसे दिमाग की बदौलत  ही खोजा गया होगा ....... क्यूंकि  दिल  तो महज एक पम्प है :) रक्त  शोधक और शुद्ध  रक्त के लिए शरीर जिसपर निर्भर है 'वो ' अवयव :)

लेकिन ' ब्रेन " के कमाल  को विज्ञान ने प्रमाण दे -दे कर , बेचारे  दिल को सोच -समझ से सर्वथा दूर कर दिया !

___________ लेकिन  दिमाग कितनी भी अपनी मनवा  ले लेकिन ' दिल ' धड़कना  बंद कर दे तब सारी होशियारी एक तरफ़ और ..........बोले तो , कोई किसी से कम नहीं ! 

_____________ ईश्वर  ने शरीर में कोई भी चीज़ बेवजह  नहीं बनाई , हाँ इन्सान उस वजह को बेवजह साबित करदे ये हुनर रखता  है ! इन्सान की  फ़ितरत ही  कुछ ऐसी है ! ऐसी  क्यूँ हैं  का जवाब जब विज्ञान ने तलाश  के नहीं  दिया तो ' मनोविज्ञान ' ने कुछ  ख़ोज और ख़ुलासे अपने जिम्मे कर  लिए ! 

_____________  ठीक है यदि दिल सोच नहीं सकता तो हम उस सोच की तरफ़ चलें जहां दिमाग सीधा हस्तक्षेप  नहीं  करता ! मनोविज्ञान ने  अपना जाल धीरे -से  फैलाया ________ चेतन - अर्धचेतन -अचेतन ______ जी हाँ , ये मन  की अवस्थाएँ हैं :) 


________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति







दिल जो भी कहेगा .....हम मानेंगे ?













_______________ अचानक ये मन कुछ भी फ़रमाइश क्यूँ कर बैठता है ? कल तक मैं इनकार कर रही थी _______ क्या जाना ! इतनी भीड़ ! वो आंधी और भगदड़ की ख़बरें ! 24 लोग बह गए और 10 तो जीवन से हाथ धो बैठे ! सन्यासी कह रहे हैं यदि व्यवस्था यूँ ही बनी रही तो हम वापिस चले जाएँगे ! fb से मनोज भाई उज्जैन ही के हैं , चार दिन पहले आने को पूछा था मुझसे , मैंने ख़ुशी -ख़ुशी मना किया था . फ़िर सेन सर का msg आया  वे शायद राजस्थान से हैं ! उस समय उज्जैन  थे , उनको भी मना कर दिया कि मैं आज ही दिल्ली से आगरा लौटी हूँ , उज्जैन का कोई इरादा नहीं है . उज्जैन से युसुफ़ ने भी इसी बारे में फ़ोन किया था और मैंने यही जवाब दिया .....
__________________ फ़िर आज सुबह से ऐसा क्या हुआ कि मैं जाने को तत्पर हूँ :) कहते हैं ना की जब बुलावा आता है तब जाने को मिलता है ! तो क्या आ गया बुलावा ? फ़िर जाना तो बनता है . माइंड सेट किया है . इसी के तहत माहौल बनाने की गरज़ से 5-7 को फ़ोन भी खड़का दिया . अरे भई उज्जैन रुकूँ कि इंदौर . बस से ही जाउंगी . कब कहाँ से मिलेगी ? सामान  कम ही रखना होगा . वैसे भारी लगेज़  और टैक्सी बाज़ी मैंने पिछले दो साल से छोड़ दी है !
____________ उज्जैन यानि महाकाल की नगरी ! जहाँ के सान्दिपनी आश्रम में कृष्ण ने शिक्षा पाई ! विक्रमादित्य की नगरी !क्षिप्रा का पावन तट !
_________ सिंहस्थ यानि साधू -सन्यासियों का जमावड़ा !जनमन का उमड़ता सागर ! व्यवस्था को नकारता असंतोष का शोर ! अति व्यस्त प्रशासन ! व्यस्त पत्रकार और ..... और जाने पर ही जान पाऊँगी :) 
__________ पर  कोई काम हुआ हो अब तक मन ही से , जिसमें दिमाग  ने  दखल  ना दी हो ? जब दिल और दिमाग  एक  साथ ,एक  ही  दिशा में  काम  करते  हैं तब ' कन्फयूजन ' हो  ही नहीं सकता ! ऐसे  लोग  बड़े  मस्त - मौला , बिंदास किसिम के होते हैं !  खुलके  के जीते हैं ! और  कई  बार ख़ाली  हाथ रह जाते  हैं ! तब  खनकती  हंसी में  खोखलापन  साफ़  झलकता  है .  अपन  तो भई ऐसे ही  हैं ,उनके  इस जुमले  का प्रभाव  कम  होने  लगता  है . लोग  जो उनसे  जलते थे , वही  खिल्ली  उड़ा  जाते  हैं . ऐसे  लोग  हमेशा  भीड़ में  रहते  हैं पर असल  जिंदगी  में अकेले  होते  हैं . इस सब प्रपंच  का निष्पक्ष सर्वे  करने पर  निष्कर्ष  ये  निकला  की ________ ' चूँकि जो दिल  ने कहा , दिमाग ने  साथ दे दिया ." दिमाग कहे और दिल मान ले आदर्श स्थिति ये है :)
 _______दिल  तो  बच्चे  की  मानिंद  है ! चाँद  की जानिब हाथ  फैलवा  ही देता है ! दिमाग  जानता  है , चाँद  की असलियत और इन्सान की औकात या हैसियत ! दिमाग कभी  चाँद नहीं मांगता ! जिसके  दिमाग ने चाँद  माँगा वो , चाँद तक पहुंचा . सारी  दुनिया इस सच से वाकिफ़  है 


_______________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति

मंगलवार, मई 10, 2016

बेचारा लेखक ...


____________________________________
लेखन के लिए क्या ज़ुरूरी है ? क्या -क्या ज़ुरूरी है ? यदि पिछले दो दशक पर नज़र डालूं तो अलग -अलग तमाम ज़वाब मिलते हैं . यहाँ तो सवाल भी मेरा है और जवाब भी मेरे ही हैं . बात साफ है ,मैं ख़ुद ही के बारे में ख़ुद को बता रही हूँ ,पर सबके सामने :)  आज नेट बहुत स्लो है . शायद पूरा दिन इसी post पर रहूँ .... मज़बूरी है , पर ज़रुरी है :)
 __________ लेखक के लिए ये बहुत जुरुरी है कि सबसे पहले अपने  विचारों को जाने -परखे - चुने और फ़िर उनको गति दे ,जो चुना है  उसे प्रवाह दे . जो चाहता है उसके लिए 'रिक्त ' को निर्मित करे !
 _____________ लिखना जितना सरल है उतना ही कठिन भी ! इसीलिए लिख तो सब लेते हैं पर सब लिख नहीं पाते . सबका अपना टैलेंट होता है . जैसे बोलते तो सभी हैं पर सबके बोलने में फ़र्क होता है . किसी के बोलने पर हम न्योछावर हो जाते हैं :) तब ,जबकि हमें मालूम होता है की वो जो बोल रहा है उसमे उसका अपना कुछ भी नहीं अर्थात अदाकारी है ! संवाद तो किसी और ने लिखे हैं और कहानीकार कोई और है' वो 'तो  बस अभिनय करता है !
_____________ यही बात लेखन पर भी लागू होती है . वाल्मीकि भी लिख गए ,उसीको फ़िर तुलसी ने लिखा फ़िर गुप्त जी ने लिखा अब कोई और भी लिखने वाला हो तो किसे मालूम ! विषय यही हो ,या फ़िर नहीं हो .गद्य हो या पद्य . खण्ड  हो पूर्ण . बात दरअसल शुरुआत  की होती है ! कई बार लेखक ख़ुद नहीं जानता कि वो क्या लिखने वाला है ? कई बार लिखना क्या है मालूम होते हुए भी लिख नही पाता . लेखक नहीं जानता कि वो क्यूँ लिखता है . लिखना उसकी आदत है , ज़ुरूरत है या जुनून ? क्या वो व्यावसायिक लेखक है ? यदि  हाँ , तब तो उसे वही लिखना पड़ेगा जो मांग है , जो विषय है . भाषण माँगा है तो वही लिखना पड़ेगा , बदले में मिलेगा पैसा ! लेखक की शोहरत यहाँ पर स्वत: समाधिस्थ  हो जाती है . उसके लिखे को हाथ  फैलाकर ,सीना फुलाकर जब बन्दा भाषण देता है तब ,वाह -वाह करने वाली पब्लिक कुछ नहीं जाती . तब लेखक की आह कोई नहीं सुनता ! वो ख़ुद भी नहीं ? वो अनजान और  ख़ुश  होने  का नाटक करता है . ऐसा  नाटक  वो ख़ुद को  छलने के लिए  करता है , इसलिए  यहाँ मंच और दर्शक  की  दरकार  नहीं  होती , बेचारा !
__________________ प्रत्यक्ष  या परोक्ष गिरीश सेठ और सुधीर गोयल जैसे लोगों ने मुझसे भी पेशकश की , मेरा लिखा हुआ द्रौपदीनामा उनके लिए मायने रखता होगा . मेरे इंकार की वज़ह से पैसे के लिए पेशकश नहीं हुई . उसे मैंने थोड़ा  सन्क्षिप्त करके दैनिक भास्कर में प्रकाशित करवा लिया था ___ " ध्रुपद  खयाल में द्रौपदी " शीर्षक से . मैं इस तरह के समझौते  नहीं करती , जहाँ ज़मीर जिंदा ना रह सके ! fb पर एक हाइकू भी चोरी हो जाए और मुझे  मालुम पड़  जाए तो तुरंत block करती हूँ . मेरी block list बड़ी लम्बी है  . zoom size 100 रखूं तो 4 feet का flow आता है. 600 से ज्यादा लोग होंगे . जिनका मैं कुछ नहीं कर सकती .
सोशल मिडिया में लेखक को उदार और बहादुर होना पड़ता है , वहां कॉपी राईट एक्ट काम नहीं करता !
____________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति  



गुरुवार, मई 05, 2016

क्या आप हाइकू लिखते हैं ?


दरअसल  एक ही विषय पर तमाम हाइकू एक ही व्यक्ति व्दारा लिखे जाएँ मैं इस बात के पक्ष में नहीं रही .इसके पीछे मेरी अपनी सोच और तर्क रहे ,जिससे सब सहमत हों ये कतई जुरुरी नहीं .जहाँ तक मैंने जाना हमारे यहाँ हाइकू अन्त्याक्षरी की तर्ज़ पर कई समूहों में खेला जाता रहा है फ़ेसबुक पर . तब एक विषय पर तमाम लोग अपने हाइकू प्रस्तुत करते हैं . किन्तु जब हम अकेले हैं ,हमारे पास एक विषय है जो एक हाइकू में नहीं समा रहा तब और हाइकू लिखने के बजाए 'तांका ' लिखा जाए या सेदोका . इसमें लिखने के लिए अधिक गुंजाईश हो जाती है . लेकिन तब भी अगर बात न बने , विचार बाहर बिखरे रह जाएँ तो 'चोका ' रचना ' चाहिए . निश्चय ही आकाश में सामर्थ्य असीमित है ,सब कुछ समा लेने की .फ़िर विचारों की क्या मजाल ? अनुभूतियों को सार्थक अभिव्यक्ति मिलनी ही चाहिए :) लेकिन इस बार में एक विषय पर 10 हाइकू लिख रही हूँ ,हाइकू शताब्दी के लिए आप भी लिख सकते हैं चयन समिति अवसर देगी उचित लगने पर उसे पुस्तक में प्रकाशित किया जा सकता है .अवसर आपके पास है !
























बुधवार, मई 04, 2016

हाइकू : कवि

*______________________1
खल रहा है 
शब्द लेकर कवि 
चल रहा है 
*___________________2
जो दिखता है 
महसूस करता 
वो लिखता है 
*____________________3
धार देता है 
रोज़ ही कलम को
ख़ुशी -गम को
*___________________4

हट प्यार से 
विरह लिखता है 
वो बिकता है 
*______________________5
अश्रु -वेदना 
वाह -वाह होती है 
चाह रोती है 
*________________6
नदी के साथ 
सागर हो जाता है 
वो क्या पाता है 
*__________________7
लेके कलम 
प्यार दे श्रृंगार दे 
फटकार दे 
*___________________8
रात जागे है 
सपन संजोता है 
कुछ बोता है 
*______________________ 9
लीक से परे 
विचारो का गगन 
कवि मगन
*_____________________10
मैं तुम या वो 
कविता का विषय
कुछ और हो 
*___________________________11

_________________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति












हाइकू : माँ और बच्चे

*1*
मन  बच्चा है 
उसे  चाहिए चाँद 
दे दो अच्छा है 

*2*
चाँद - खिलौने 
जगके ना मिलते 
स्वप्न सलोने 

*3*
सीप में मोती
सौ सपन संजोती
दीप में ज्योति

*4 *
शीश डिठौना 
आंचल से ढकती 
है मेरा छौना

*5 *
निंदिया भाती 
माँ देती मीठी लोरी 
बिंदिया भाती 

*6 *
शिशु के साथ
बालक बन जाती
माँ तुतुलाती 

*7 *
गीत सुनाती 
माँ खूब  डांटकर 
प्रीत सुनाती

*8 *
शुरू कहानी 
 राजा था इक रानी
बड़ी सुहानी !

*9 *
झूला -पलना 
कितना डरती हैं 
धीरे चलना 

*10 *
कल के ख़्वाब 
देखें जीवनभर 
देके किताब 

*11 *
माँ तो गुरु है
शिशु हो जाए युवा
शिक्षा शुरू है 

*12 *
ले दो निवाले 
कसमें -मनुहार 
ले खाले -खाले 

*13 *
बेटा या बेटी 
आंचल है आकाश 
दोनों के पास 

*14*
सीख ,आषीशें
न कर बातें खोटी
श्रम की रोटी

*15*
चिंता हरती 
निर्विघ्नम कहके
चिंता करती

*16 *
रूप अनेक 
देवी ,भारतमाता
सबसे नाता

*17* 
पूत -कपूत 
नहीं कोई कुमाता
रचे विधाता

*18*
दिल में घर 
हे माँ रहे अमर
जीवनभर

*19*
माँ कमज़ोर  
शिशु  देता ममता
शक्ति क्षमता

*20 *
माँ और बच्चे 
हैं दुनियाँ भर में 
सबसे अच्छे
*
____________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति

















सोमवार, मई 02, 2016

दूर दो कदम ...


____________________________________________________________

 दूर दो कदम ही  , मंज़िल है !
हौसलों ने दिया ,ज़वाब अभी !

अँधेरे दूर से , डरा रहे मुझको ,
ना डूबा नहीं ! आफ़ताब अभी !
______________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति

रविवार, मई 01, 2016

मज़दूर ...


___________________________________________

देखें  दुर्दशा  
बेचारा मज़दूर 
हमेशा फंसा 
_______________________

बातों से दूर 
श्रम के बीज बोता 
ये मजदूर 
_________________

काश  मिलते 
हंसके दो निवाले 
चैन से खाले
______________________

किसी को क्या है 
मज़दूर दिवस 
आ गया बस 
___________________________
जब मन बहुत भर जाता है किसी समवेदनशील मुद्दे पर , तब उस गहन पीड़ा को यूँ ही अभिव्यक्त होने देती हूँ ' हाइकू ' के जरिये . मुझे मालूम है , उन तमाम मजदूरों को तो पता भी नहीं की आज ' मज़दूर दिवस ' है !
________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति



Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...