वो मौसम है ....
मेरे दिल का टुकड़ा ही , मुझको छलता है !
जैसे कोई मौसम है , जो रोज़ बदलता है !
इक गुनाह माफ़ करती हूँ , आह भूलकर !
और इक को भूल जाती हूँ , चाह भूलकर !
पर वो बदगुमान इस कदर हो गया है !
जिसे दिया था जनम , वो खो गया है !
__________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
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