शनिवार, मई 21, 2022

मन

 मन बैरागी प्रपंच न समझा..

 खुद को खुद से दूर कियाा!!

तोड़ नेह के धागे तुमने...

क्यों मुझको मजबूर किया ?

_____________डॉ प्रतिभा स्वाति ✍️

बुधवार, सितंबर 15, 2021

आज फिर से

 बचपन ही से

सुनती आई हूं

आगे बढ़ने की बात ,

तो निश्चय ही

पीछे लौटना होता होगा

गलत या बुरा।

फिर फिर मैं लौट रही हूं

तीन-चार दशक पीछे, 🙃

नहीं है टीवी या मोबाइल 

शहर नहीं घुस पाया

गांव में,🙂

 बच्चे पढ़ते तब भी थे

नहीं थी ऑनलाइन क्लासेस

मैसेंजर और व्हाट्सएप के बिना

रिश्ते निभाए जाते थे  

चिट्ठियों के जरिए

जो आज 50 से ऊपर है

तब 10 _15 के रहे होंगे  

पढ़ते होंगे इंद्रजाल कॉमिक्स 

खेलते होंगे छुपन छुपाई 

कबड्डी या गिल्ली डंडा 

न मूवी न सेल्फी 

न कारे ए सी 

बहुत फुर्सत थी तब 

खूब सो जाया करते थे 

खूब हंसी आती थी 

खाते पीते मस्त रहते थे  

हां तभी की बात है जब 

बड़े लोग बच्चों से कहा करते थे 

आगे बढ़ने की बात 

और  आगे बढ़कर हम 

उस मुकाम पर आ खड़े हुए हैं 

कि चाहने पर भी 

लौट नहीं सकते पीछे 

________________डॉ प्रतिभा स्वाति





गुरुवार, मई 07, 2020

आग बुझ तो गई पर ...

 आग 
 जंगल में लगी थी ...
देख रहे थे 
तमाशाई सब !

उड़ तो गए पंछी 
सभी ... पर 
झुलस गए पेड़ 
जल गए घोसले 
मर  गए चूज़े !

दिशाहीन दौड़ 
जंगली जानवरों को 
थकाकर मार गई 
सबको ... और 
लपटें छूती रहीं 
आसमान को !

बच गए चाँद तारे 
दूर   बसे लोग 
नदी -तालाब -झरने 
हवा बहती रही !

फिर ?
आग बुझ गई ?
राख  हो गया सब ?
लोगों ने क्या किया ?
आग  लगी कैसे  थी ?
कब की बात है ये ?

अरे ! ये क्या !
राजन भूल गए 
उन्हें चुप रहना है !
हमेशा सवाल 
वेताल करता है 
आज उसीसे पूछ बैठे ?

बेताल झाड़ पर 
फिर उल्टा लटक गया 
 उसने दु:खी  होकर कहा 
राजन .....आग 
बस्ती में फ़ैल गई ...
कुछ जलके मर गए ...
कुछ भाग गए 
और कुछ 
आग बुझाने में लग गए !
आग बुझ तो गई पर 
बुझाने वाले 
कुछ  जलकर 
कुछ थककर 
कुछ प्यास से
मर रहे हैं ... अब भी ...
------------------------------ दोस्तों ये आग १३४७  के प्लेग  की  हो या १९१८ के इन्फ्लुएंजा  की या फिर 2020 के  कोरोना  की ...... बुझना  तय  है ! हम कितना   नुकसान  उठाएंगे ...कैसे  भरपाई  करेंगे ये  सब सवाल वक्त के उस तरफ  हैं ! इधर  हम और आप  हैं . हम कौन हैं ,किनमे  से हैं ,क्या चाहते  हैं और क्या  योगदान  है हमारा ?
      ये योगदान वाले सवाल पार "यदि  हम मौन है तो हमें ये चुप नहीं  तोड़नी  चाहिए.... जब तक कि आग पर काबू ना पा लिया जाए " 
____________________________________ डॉ.प्रतिभा स्वाति 


मंगलवार, अप्रैल 09, 2019

कहाँ है G+

               आज  बड़े  दिन  बाद घर  लौटी  तो  कुछ  बदला - बदला  सा  लगा . शायद  गार्ड  या  गनमेन  बदल  गया .... जाने  मेनगेट  पहले  वाला  नही  रहा  ,ऐसा  "मुझे " लगा ! हो  जाता  है  कई  बार . कई   बार  छोटी  -सी  बात  सबको  पता  होती  है  , सिवाय  आपके .  मुझे  कई  बातें या  जानकारी  या  खबर  कह  लीजिये  ज़रा  देर  से  मालूम   होती  हैं .

         हाँ तो  मै  घर  तक  जब  पहुंची  तब  दरवाज़ा  खोलने  में  दिक्कत  आई , चाभी  तो  वही  थी ... सही  थी तो  क्या  ताला  बदल  गया  है ? मेरी  नेम  प्लेट  कहाँ  है ... ये  एड्रेस  पहले  वाला  ही  है  क्या ? वो  मेरे  सब  पड़ोसी  क्या  हुए ? और  स्टाफ़ ? बगीचा  वही  है अलबत्ता  फूल  कुछ  कम  से लग  रहे  हैं .
        हाँ  भई .... ये  मामला  घर  का  नहीं  ब्लॉग  का  है ..... कहाँ  है G + की  ID और पेज  ? कोई  बताए मुझे . बड़ी  मुश्किल  से  ब्लॉग  खुला और पोस्ट  का ऑप्शन  मिला ..... पर  कविताई  का  मूड चौपट  है . 
------------------------------------ डॉ . प्रतिभा स्वाति

बुधवार, अक्तूबर 31, 2018

Good morning MP.DD MADHYAPRADESH





 जानी -मानी  राइटर  - कवियत्री - डेंटिस्ट  ----------  my  dtr ---------------Dr . prarthana  pandit 

बुधवार, अक्तूबर 17, 2018

समय के साथ .....

 चल  रहा  है 
सतत 
मोह -माया से 
विरत 

पीछे  न देखा 
मुड़कर  कभी 
देखा  नहीं 
जुड़कर  कभी 

तुम  अमर 
नश्वर  सभी 
श्राप या वर 
सोचा  कभी ?

बलवान तुम 
कमज़ोर  जग 
चलते सतत 
थकते न पग ?

कर लिया 
इतना सफ़र 
मंज़िल  नहीं 
कोई मगर 

दिखते  नहीं 
रुकते  नहीं 
तुम कौन हो ?
क्यूँ मौन हो ?

किस श्राप से 
चल रहे  हो ?
 कौनसा  वर ?
अटल रहे  हो 

सुनकर मुझे 
क्यूँ हंस रहे हो ?
मेरे समक्ष 
विवश  रहे हो 

गति में ,समय 
तुमसे  बड़ी  हूँ 
मैं ध्वनि  हूँ 
आगे  खड़ी  हूँ :)
______________ डॉ .प्रतिभा स्वाति

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