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देखें दुर्दशा
बेचारा मज़दूर
हमेशा फंसा
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बातों से दूर
श्रम के बीज बोता
ये मजदूर
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काश मिलते
हंसके दो निवाले
चैन से खाले
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किसी को क्या है
मज़दूर दिवस
आ गया बस
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जब मन बहुत भर जाता है किसी समवेदनशील मुद्दे पर , तब उस गहन पीड़ा को यूँ ही अभिव्यक्त होने देती हूँ ' हाइकू ' के जरिये . मुझे मालूम है , उन तमाम मजदूरों को तो पता भी नहीं की आज ' मज़दूर दिवस ' है !
________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
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