वो ..... जो
सन्यासी है
बस ...
मुस्कुराता है !
आता है ....
चला जाता है !
अक्सर.......
समझाता है !
जीवन के रहस्य
हास्य - क्लेश
संघर्ष - द्वेष
मोह -माया ....सब !
उसने सब छोड़कर
ओढ़ रखी है
एक ....
मृदुल - शांत
ठहरी सी मुस्कान !
गहरी सी मुस्कान !
वो यहाँ नहीं रहता
इस भीड़ और
शोर - शराबे में !
यहाँ के दंगे ,और
खून -खराबे में !
दूर उस निर्जन में
आख़िर ....
क्या है ?
उसके मन में ?
वो क्यूँ आता है ?
मुस्काता है ...
भीड़ ... बढ़ रही है
अब उसकी तरफ़ ...
अब वो नहीं आता !
आगे ...और आगे
एकांत में ...
खो जाता है ...
भीड़ ख़ोज रही है
उस इनसान को ...
बियाबान को ...
वो मिल जाता है
फ़िर मुस्काता है !
फ़िर समझाता है !
लौटो .... लौट जाओ
भीड़ लौटती है ...
भरे मन से ...
हर कोई ...तबसे
बदल गया है ...
हर कोई मुस्काता है
वो ...सबको
अपनी .... वही
तिलस्मी मुस्कान
दे जाता है .....
वो ... रोज़
याद आता है !
रोज़ .....
याद किया जाता है !
गढ़ दिया है चरित्र !
देखो .... किसे
पसंद आता है ...
और .... कौन
अपनाता है ...
मुस्काता है ...
समझाता है ...
आता है...
चला जाता है ...
_________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
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