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किताबों में छुपे
फूल / अब तलक
मुरझा गए होंगे !
उड़ गई होगी
सारी खुशबू !
भूल गई होंगी
पंखुड़ी हंसना !
पर वो यादें और
कुछ वादे अब भी
ज्यों के त्यों
बंद हैं / उसमें !
आज / मुक्त करूं
उस फूल को
इस किताब से !
उन यादों को ,
अपनेआप से !
यकबयक
खुली किताब
हर / शब्द
फूल बन गया !
ज़माना / क्या
फ़िर बदल गया ?
पहले / फूल
शब्द हो जाते थे !
अब / शब्द
फूल बन जाते हैं !
फूल और शब्द
इक-दूसरे के हैं
पूरक /अपनी बात
कहते हैं / हंसकर !
महककर !
जो भी हो
मेरी किताब
महकती है हरदम !
भूलकर हर सितम !
_____________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति