रविवार, अगस्त 21, 2016

देखिये .... कुछ फ़र्ज़



देश  की. ... ये  दुर्दशा  !
कोई  तो  बीड़ा  उठाए  !
अपेक्षा  का  कटोरा लिए 
कतार  में सब  खड़े  हैं !

अरे , हमपर  भी  कुछ ,
कर्ज़  हैं .... वतन  के !
कुछ  फ़र्ज़  .....देखिये ,
यूँ  ही  उपेक्षित पड़े हैं !
---------------- डॉ . प्रतिभा  स्वाति

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