मंगलवार, मार्च 21, 2017
मेरा क़ातिल...
कितना मुश्किल है अपनी बात सबपर ज़ाहिर करना .... कैसे लिखते हैं लोग आत्मकथा ,क्या 100 % सच लिख पाते हैं ? ज़िन्दगी कभी आईने से भी मुंह चुराती है ... मै जिस दौर से गुज़र रही हूँ ख़ुदा वाकिफ़ है या मै ख़ुद ! मैं कहाँ से जुटाऊं हिम्मत उस सच के मुज़ाहिरे के लिए जिसके सुबूत तलवार की तरह हर पल मेरे सिर पर लटकते हैं ! संकेत करती हूँ ,मगर नाकाम ....कुछ का कुछ मतलब निकाला जाता है ! फिर ?
_________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
_________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
मंगलवार, मार्च 14, 2017
अच्छे दिन ....
गरीब का घर ...
विधवा के बच्चे !
चाँद की रोटी ...
लोरी के लच्छे !
बताइए राजन ...
बुरे कि अच्छे ?
-----------------------
और राजन चुप रह नही सकते .... जनता हो या बैताल उसे अब भी पेड़ ही पर लटकना है , वो भी सिर के बल :)
कौन कहता है ... जमाना बदल गया है ....सब वही है .. वैसा ही ! भेड़ का मन है खाल ओढ़ ले तो डर जाइये और उतार दे तो पीछे हो जाइये ...
विधवा के बच्चे !
चाँद की रोटी ...
लोरी के लच्छे !
बताइए राजन ...
बुरे कि अच्छे ?
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और राजन चुप रह नही सकते .... जनता हो या बैताल उसे अब भी पेड़ ही पर लटकना है , वो भी सिर के बल :)
कौन कहता है ... जमाना बदल गया है ....सब वही है .. वैसा ही ! भेड़ का मन है खाल ओढ़ ले तो डर जाइये और उतार दे तो पीछे हो जाइये ...
के तो अनुकरण .... या फ़िर अंत :) बोले तो मध्यम मार्ग भी है ----- पहले दांडी यात्रा फिर ' हे राम ' और इसी तरह ये लीलावती - कलावती की कथा चलती रहेगी .... सदा ...हमेशा ... निरंतर ! तो फिर बोलो ___ भक्तजनों .... सत्य नारायण भगवान कीईईईइ ___ जाआआआअय :)
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