मेरा क़ातिल...

  कितना मुश्किल है अपनी बात सबपर ज़ाहिर करना .... कैसे लिखते हैं लोग आत्मकथा ,क्या 100 % सच लिख पाते हैं ? ज़िन्दगी कभी आईने से भी मुंह चुराती है ... मै जिस दौर से गुज़र रही हूँ ख़ुदा वाकिफ़ है या मै ख़ुद ! मैं कहाँ से जुटाऊं हिम्मत उस सच के मुज़ाहिरे के लिए जिसके सुबूत तलवार की तरह हर पल मेरे सिर पर लटकते हैं ! संकेत करती हूँ ,मगर नाकाम ....कुछ का कुछ मतलब निकाला जाता है ! फिर ?
_________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति

मंगलवार, मार्च 14, 2017

अच्छे दिन ....

गरीब का घर ...
विधवा के बच्चे !

चाँद की रोटी ...
लोरी के लच्छे !

बताइए राजन ...
बुरे कि अच्छे ?



-----------------------
 और राजन चुप रह नही सकते ....  जनता हो या बैताल उसे अब भी पेड़ ही पर लटकना  है , वो भी सिर के बल :) 
कौन कहता है ... जमाना बदल गया है ....सब वही है .. वैसा ही ! भेड़ का मन है खाल ओढ़ ले तो डर जाइये और उतार दे तो पीछे हो जाइये ...


 के तो अनुकरण .... या फ़िर अंत :) बोले तो मध्यम मार्ग भी है ----- पहले  दांडी यात्रा फिर ' हे राम ' और इसी तरह ये लीलावती - कलावती की कथा चलती रहेगी .... सदा ...हमेशा ... निरंतर ! तो फिर बोलो ___ भक्तजनों .... सत्य नारायण भगवान कीईईईइ ___ जाआआआअय :)

ज़िन्दगी....

तम्रिसी ... खोट की महफ़िल ...
बुरा .... मेरा  खरा  होना !
सच की ..... फस्ल की खातिर...
ज़ुरूरी है ... सच को बोना !
----------------