___________________________________________________________ आजकल कहते हैं किनारे .... रोज़ ही मज़धार के क़िस्से ! भंवर को भरमाया उसीने .... न कुछ आया उनके हिस्से ! _________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
_________________________________ आचरण जब , दम्भ का पर्याय हो ... तब , स्वाभिमान की बात मत करें ! बेमौसम बरसते बादल से फस्ल की... अकाल या किसान की बात मत करें ! __________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
_____________________________________________________________________ आरज़ू - तमन्ना - ख्वाहिश की गठरी , खोजती है , खुलने के बहाने कुछ ! दोहराएगी ज़ुरूर , तारीख मुझको , बस गुज़र जाने दे , ज़माने कुछ :) ________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
____________________________________________________ ख़्वाब आते हैं , रह - रह कर , देते हैं हक़ीकत को बहाने कुछ ! देखके चमक मुस्तकबिल तेरी, मेरा माज़ी लगा मुस्कुराने कुछ ! ________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति