जितना सुकून रामायण पढ़कर मिलता है उतनी ही ख़ुशी ' पंचवटी ' और 'साकेत ' पढ़कर भी ! हालाकि गुप्तजी भक्तिकाल में नहीं गिने जाते ! रामभक्ति धारा के प्रमुख कवियों में तुलसी ही सर्वोपरि रहेंगे !
----------------------- परंतु ये सच है कवि की रचना को हम काल की विभाजन रेखा में नहीं बांध सकते ! न ही कवि को विषय -विशेष के लिये बाध्य किया जा सकता है !
-------------------------- मुझे मज़बूर करते हैं साकेत के अंश / की उन्हें अपनी रूचि के मुताबिक blog पर सहेज लूँ और साहित्य से दूर होती इस नवयुवा जमात को उन मुक्तकों की चमक बार -2 दिखाऊँ जो आज भी उनको
चकाचौंध करने का दम रखती है !
-------------------------- अपनी पसंद से / साकेत के कुछ अंश दे रही हूँ ---------- इसे राम के लिये आस्था समझिये या कवि के लिये आदर ......सादर ....
------------------------ डॉ . प्रतिभा स्वाति
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नाक का मोती अधर की कांति से,
बीज दाड़िम का समझ कर भ्रांति से, देख कर सहसा हुआ शुक मौन है;
सोचता है, अन्य शुक यह कौन है?"
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बिदा होकर प्रिया से वीर लक्ष्मण--
हुए नत राम के आगे उसी क्षण।हृदय से राम ने उनको लगाया,
कहा--"प्रत्यक्ष यह साम्राज्य पाया।"
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शेष मोती / समन्दर से चुन-चुनकर / कॉमेंट्स में देती
रहूंगी :)