रविवार, जून 29, 2014

साकेत


    जितना सुकून रामायण पढ़कर मिलता है उतनी ही ख़ुशी '  पंचवटी ' और 'साकेत ' पढ़कर भी ! हालाकि  गुप्तजी भक्तिकाल में नहीं गिने जाते ! रामभक्ति धारा के प्रमुख कवियों में तुलसी ही सर्वोपरि रहेंगे !
----------------------- परंतु ये सच है कवि की रचना को हम काल की विभाजन रेखा में नहीं बांध सकते ! न ही कवि को विषय -विशेष के लिये बाध्य किया जा सकता है ! 
-------------------------- मुझे मज़बूर करते हैं साकेत के अंश / की उन्हें  अपनी रूचि के मुताबिक blog पर सहेज लूँ और साहित्य से  दूर होती इस नवयुवा जमात को उन मुक्तकों की चमक  बार -2 दिखाऊँ जो आज भी उनको 
चकाचौंध करने का दम रखती है !
-------------------------- अपनी पसंद से / साकेत के कुछ अंश दे रही हूँ ---------- इसे राम के लिये आस्था समझिये या कवि के लिये आदर ......सादर ....
------------------------  डॉ . प्रतिभा स्वाति 
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मंदिरस्था कौन यह देवी भला? 
किस कृती के अर्थ है इसकी कला? 
स्वर्ग का यह सुमन धरती पर खिला; 
नाम है इसका उचित ही "उर्मिला"। 

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  नाक का मोती अधर की कांति से, 
बीज दाड़िम का समझ कर भ्रांति से, 
देख कर सहसा हुआ शुक मौन है;
सोचता है, अन्य शुक यह कौन है?" 
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  बिदा होकर प्रिया से वीर लक्ष्मण--
हुए नत राम के आगे उसी क्षण।
हृदय से राम ने उनको लगाया,
कहा--"प्रत्यक्ष यह साम्राज्य पाया।" 

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 शेष मोती / समन्दर से चुन-चुनकर / कॉमेंट्स में देती

 रहूंगी :)









मधुबाला

 _____________जहाँ तक मुझे मालूम है , हिंदी साहित्य में बच्चन जी ने ' हालावाद ' ही चला दिया था ! मधुबाला
मधुशाला 
मधुकलश  
------------------ इन 3 रचनाओं के माध्यम से ! समीक्षक , मीनमेख निकालते रहे , तब भी और अब भी .किसी भी वस्तु या व्यक्ति की आलोचना करना बहुत सरल है ( शायद इसलिए की हम सब एक दूसरे से भिन्न हैं , और इसीलिए दूसरे को सहजता से स्वीकार पाना जरा मुश्किल है ) .
         इसीलिए / ऐसी स्थिति  में ' सकारात्मक सोच " का स्लोगन एक समाधान साबित हुआ :)
------------------ ये सही है ,हाला का अर्थ ' मदिरा ' है !
---------- कानून और   समाज इसके  खिलाफ है ! किन्तु साहित्य में /इसपर लिखा गया !
------------ क्या ,तब समाज में /ये सब घटित हो रहा था ? या समाज उस ओर उन्मुख हो रहा था ? समाज में ऐसी कृतियों की ज़ुरूरत थी ,विकास या मनोविलास के लिये ? या फिर ये लेखक की एक सहज अभिव्यक्ति थी ,जिसे सहजता से स्वीकारा जाना चाहिये था !
जो भी हो / शब्द चयन उत्कृष्ट था ! अभिव्यक्ति पुरज़ोर थी ! सार्थकता पर यदि प्रश्नचिन्ह हैं या थे तो भी मैं 'सकारात्मकता की ओट में न सिर्फ़ विराम लूंगी अपितु ' मधुबाला ' के कुछ अंश कॉपी पेस्ट भी करुँगी ----------------- डॉ . प्रतिभा स्वाति 
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1
मैं मधुबाला मधुशाला की,
मैं मधुशाला की मधुबाला!
मैं मधु-विक्रेता को प्यारी,
मधु के धट मुझ पर बलिहारी,
प्यालों की मैं सुषमा सारी,
मेरा रुख देखा करती है
मधु-प्यासे नयनों की माला।
मैं मधुशाला की मधुबाला!
2
इस नीले अंचल की छाया
में जग-ज्वाला का झुलसाया
आ कर शीतल करता काया,
मधु-मरहम का मैं लेपन कर
अच्छा करती उर का छाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला!

----------------------------------- ' मधुबाला ' के और भी कुछ अंश मै कॉमेंट्स में देती रहूंगी :)
________________________ प्रस्तुति : डॉ. प्रतिभा स्वाति

बुधवार, जून 25, 2014

जागे भारत ...

           हिंदी साहित्य के इतिहास पर यदि हम एक सरसरी - सी नज़र डालें ,तो आदिकाल से आधुनिक काल तक के विभाजक वर्तुल में ----------- सबसे ज्यादा प्रभावित करता है 'वीर गाथा काल ' और 'भक्तिकाल .' 

तब जो भी लिखा गया / वो समय की मांग थी ?
उस समय की स्थितियां / ज़िम्मेदार  थीं  ?
समाज में माहौल ,उस तरह का था ?
हमारे नैतिक मूल्य ,उकसाते थे ' उस ' सृजन  के लिये ?

---------------- सवाल उठाना मेरा मक़सद नहीं है :) मुझे तो बस ये जानना है कि , अब साहित्य में सृजन के पुष्प खिलते तो हैं पर उनसे फ़ैलने वाली सुरभि वैसी क्यूँ नहीं ? यदि साहित्य /समाज का दर्पण है तो --------- आईना बदल गया है ....या चेहरे....या.......या..... !!!
---------------------------- डॉ . प्रतिभा स्वाति

लौ यादों की ....

     

       कई बार लिखने को बहुत कुछ होता है / पर हम नहीं लिख पाते !
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 गुलाबी कागज़ भी हो !
   और रोशनाई भी हो !
दिल में ख़ुदा भी हो --
साथ खुदाई  भी  हो !
................................. पर फ़िर भी ....ख्याल / लफ्ज़ों की शक्ल नही ले पाते ...

------------ ऐसा / तब होता है जब बाहर का शोर , भीतर की आवाज़ नही सुनने देता ! 

................. ओह / सचमुच एकान्त बहुत ज़ुरुरी है ! सही कह गए हैं बुज़ुर्ग ------ भजन , भोजन , शयन , अध्ययन , चिन्तन / बिना एकान्त के नही किये जाने चाहिये !
---------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति

मंगलवार, जून 24, 2014

भक्ति


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    " भक्ति शब्द की व्युत्पत्ति 'भज्' धातु से हुई है----------- जिसका अर्थ 'सेवा करना' या 'भजना' है, अर्थात् श्रद्धा और प्रेमपूर्वक इष्ट देवता के प्रति आसक्ति।
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भक्ति के लिये / आस्था चाहिये / समर्पण चाहिए।
हम अराध्य को चाहे जिस रूप में ढूंढ सकते हैं। 
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 भक्ति योग में / 11 अवस्थाओं का उल्लेख है 
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 हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल 1375 वि0 से 1700 वि0 तक जाना जाता है।
 हिन्दी साहित्य का मध्यकाल भक्तिकाल के नाम से प्रसिद्ध है।
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                                                                                            प्रस्तुति : डॉ. प्रतिभा स्वाति

जन - गण -मन





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जन गण मन, भारत का राष्ट्रगान है जो मूलतः बंगाली में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखा गया था । ये हम सभी जानते हैं 
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राष्ट्रगान के गायन की अवधि लगभग ५२ सेकेण्ड है । कुछ अवसरों पर राष्ट्रगान संक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है, इसमें प्रथम तथा अन्तिम पंक्तियाँ ही बोलते हैं जिसमें लगभग २० सेकेण्ड का समय लगता है। संविधान सभा ने जन-गण-मन को भारत के राष्ट्रगान के रुप में २४ जनवरी, १९५० को अपनाया था। इसे सर्वप्रथम २७ दिसम्बर, १९११ को कांग्रेस के कलकत्ता अब दोनों भाषाओं में (बंगाली और हिन्दी) अधिवेशन में गाया गया था। पूरे गान में ५ पद हैं।
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जनगणमन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलजलधितरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जयगाथा।
जनगणमंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
-------------------------- जयहिंद 
------------------------------------------------------ प्रस्तुति : डॉ. प्रतिभा स्वाति



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तांका ... तुम ख़ास हो




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        हाइकू /तांका /सेदोका /चोका------------ ये सब जापानी शब्द हैं ! जो काव्य में भिन्नता  या विशिष्टता का संकेत देते हैं !
------------------  हिंदी में भी  लिखे  जाते हैं !
________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति

शनिवार, जून 21, 2014

अभिव्यक्ति / ज़ुरुरी है

          अभिव्यक्ति / बेहद ज़ुरुरी  है !ऐसा  मनोविज्ञान का मानना है :)
         यदि हम खुदको ज़ाहिर न करें / तो क्या हो ? तब हमारी गणना सामान्य / सहज व्यक्ति के रूप में नहीं की जा सकेगी अर्थात तब असामान्य और विशिष्ट  होने की मनोदशा तक पहुंचना मुमकिन है ! पर  लाज़िमी नहीं :)
-------------------- मनोविज्ञान जब बखिया उधेड़ता है /तब ताने - बाने तार -तार हो जाते हैं ..... हर पहलू के सौ-सौ रुखसार ! कारण / लक्षण / परिणाम /  रूप/भेद - मतभेद ..... अतीत - भविष्य सब !
           जब भी इसका अध्ययन किया जाता है , चिन्तन  अवश्यम्भावी है ... फ़िर क्रिया - प्रतिक्रिया !वही  तो है अभिव्यक्ति .......
------------------------------- जारी ...
---------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति

सोमवार, जून 16, 2014

blog kya h ?

           एक ही प्रश्न कई बार सामने आए / तब  जवाब देना दायित्व बन जाता है  -------------------------------------------------- और मैने कोशिश की है / जवाब खोजने की :)

- ब्लॉग क्या है ?
वेब-लॉग शब्द का संक्षिप्त रूप ही ब्लॉग कहा जाने लगा है. यह शब्द १९९७ में अमेरिका में प्रथम बार इंटरनेट के सन्दर्भ में आया था. ब्लॉग का मतलब पर्सनल डायरी या ऑनलाइन डायरी ही समझा जाता है, जहाँ आप कुछ भी लिख सकते ...
--- और कुछ पूछना है 


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  •          - यत्र-तत्र बिखरी जानकारियों व विभिन्न समाचारों से ब्लॉग का नाम सुनते-सुनते स्वाभाविक रूप से मन-मस्तिष्‍क में जिज्ञासा उठती है कि यह ब्लॉग आखिर है क्या ? सीधा-सीधा समझें कि साइबर (इंटरनेट) दुनिया का एक आधुनिक उत्पाद है
  • -----------------------------------------------.. 
  • इंटरनेट पर उपलब्ध तमाम तरह की तकनालॉजी के बीच ब्लॉग भी अपनी अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करने का एक नया सशक्त माध्यम है जो तेज़ी से लोकप्रियता के नए आयामों को तोड़ता प्रगति पथ पर अग्रसर है।
     'ब्लॉग' वेब-लॉग का संक्षिप्त रूप है, ...
  • .

  • पितृ दिवस ?:)


      पिता का साया !
      तपता मरुथल !
       मेघ की छाया !
    -------------------------
    हाइकू : डॉ.प्रतिभा स्वाति
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    हाइकू : हैपी फादर्स डे

    हाइकू : हैपी फादर्स डे:



      रिश्ता  निर्मल !

       है नाज़ुक लेकिन !

        बड़ा प्रबल !

     ------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति

    गुरुवार, जून 12, 2014

    व्यंग्य

                   हास्य -व्यंग्य ----------- प्रचलन में है ! पर  कई बार जब --- हास / परिहास / उपहास के भेद  भुला दिए ,जाते हैं तब होता है कोई आहत / और कोई , जिसे पता भी नहीं होता कि / अनजाने में कोई अपराध हुआ है !
    ----------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति

        

    बुधवार, जून 11, 2014

    बात..


      कडवे  बोल .......
    मत कह मुख से ....
    रह सुख से :)
    --------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति




    सोमवार, जून 09, 2014

    तांका : नेता



       
                                                                          

    रविवार, जून 08, 2014

    हाईगा / ज़ख्म

          
      
     -------   net  problem  होने पर कई बार g + / open ही नहीं होता , blog वो ज़रिया बन जाता है ,जहाँ से अपनी बात / आप तक पहुंचाती हूँ ! हर बार 5 gb खत्म होने के बाद , इस  मुश्किल से आप भी गुज़रते हैं ?


    बुधवार, जून 04, 2014

    समय के साथ ...



     शब्द / ब्रम्ह है !
    और...
    अर्थ शाश्वत !

    पर /अब ,
    समय के साथ ,
    ये / नहीं रहते ,
    यथावत !
    -------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति 

    मंगलवार, जून 03, 2014

    लेखन....


                 लेखन कभी खुद के   लिये होता है / कभी सबके लिये ! लेकिन ..... वह कभी पूरा नहीं होता ! ये विकास की संभावना है या अभिव्यक्ति का पुरज़ोर तकाज़ा ?
              हर बार विराम लगाने का प्रयास / प्रश्नचिन्ह बन जाता है !.......
    ------------------------ डॉ . प्रतिभा स्वाति

    जुगनू जब ...

                                                                                         रात  में / उस  पात  पर .....                                      .
       जुगनू जब मचलता  है !                                                                                                                                सचमुच / शाख  को  तभी .....                                        रात का / पता  चलता है !                                                                                                                                 ....................................... डॉ . प्रतिभा स्वाति