वो दिल में बसे हैं ...
लोग कहते खो गए !
अश्रु हर अनमोल है ...
मुझसे जाया हो गए !
ओह ! इन्सान जो जीता है वही लिखता है ( जब दिल से लिखा जाता है ) लेकिन जब दिमाग से कलम चलती है तब , वह जो सोचता है वो लिखता है . जो वह चाहता है वो लिखता है !
लिखने वाला जब अपनी अभिव्यक्ति लेखन के मार्फत सार्वजनिक कर देता है तब ..... पाठक पर जो गुज़रती है वह कभी सच नहीं कहता :) fb पर like और वाह -वाह के कमेन्ट ठोके जाते हैं ! कोई आलोचना करे भी तो क्यूँ आख़िर ? block होने का रिस्क ! विवाद होने का डर !
ऐसा कविता के सन्दर्भ में होता है . यदि पोस्ट राजनीति या धर्म से संदर्भित हो , तब मुलाहिजा ज़रा कम किया जाता है . विवाद से डर नहीं लगता . न ही तब कोई किसी को block करता है !
जो भी वजह हो पाठक को दोनों स्थितियों में सम्वेदनशील होना चाहिए ! और लेखक को हमेशा ज़रा सावधान :) और दोनों ही को वक्त की अहमियत को समझने की ज़ुरूरत नहीं है क्या ? पूरी ज़िन्दगी में से आधी सोकर गुज़ारने वाले हम ... अपने देश को क्या दे रहे हैं ? और क्या उम्मीद लगाए बैठे हैं ? ये सवाल जब जेहन में उठता है तब हताशा के उन क्षणों में मैं आध्यात्मिक हो जाती हूँ ..... फ़िर उर्जावान ..... फ़िर एक सकारात्मकता मुझे नव - सृजन के लिए प्रेरित करती है :) क्या आपके साथ भी ऐसा होता है ? क्या यही हैं मसर्रत और गम के रिश्ते ?
__________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
लोग कहते खो गए !
अश्रु हर अनमोल है ...
मुझसे जाया हो गए !
ओह ! इन्सान जो जीता है वही लिखता है ( जब दिल से लिखा जाता है ) लेकिन जब दिमाग से कलम चलती है तब , वह जो सोचता है वो लिखता है . जो वह चाहता है वो लिखता है !
लिखने वाला जब अपनी अभिव्यक्ति लेखन के मार्फत सार्वजनिक कर देता है तब ..... पाठक पर जो गुज़रती है वह कभी सच नहीं कहता :) fb पर like और वाह -वाह के कमेन्ट ठोके जाते हैं ! कोई आलोचना करे भी तो क्यूँ आख़िर ? block होने का रिस्क ! विवाद होने का डर !
ऐसा कविता के सन्दर्भ में होता है . यदि पोस्ट राजनीति या धर्म से संदर्भित हो , तब मुलाहिजा ज़रा कम किया जाता है . विवाद से डर नहीं लगता . न ही तब कोई किसी को block करता है !
जो भी वजह हो पाठक को दोनों स्थितियों में सम्वेदनशील होना चाहिए ! और लेखक को हमेशा ज़रा सावधान :) और दोनों ही को वक्त की अहमियत को समझने की ज़ुरूरत नहीं है क्या ? पूरी ज़िन्दगी में से आधी सोकर गुज़ारने वाले हम ... अपने देश को क्या दे रहे हैं ? और क्या उम्मीद लगाए बैठे हैं ? ये सवाल जब जेहन में उठता है तब हताशा के उन क्षणों में मैं आध्यात्मिक हो जाती हूँ ..... फ़िर उर्जावान ..... फ़िर एक सकारात्मकता मुझे नव - सृजन के लिए प्रेरित करती है :) क्या आपके साथ भी ऐसा होता है ? क्या यही हैं मसर्रत और गम के रिश्ते ?
__________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें