व्यक्तित्व - विकास
__________________ आज " पर्सनालिटी डेवलपमेंट " की ' क्लासेस और कोचिंग ' को समाज ने बड़ी सहजता से स्वीकार लिया है ! आख़िर छोटे या बड़े बच्चों के विकास में कौनसी कमी रह जाती है , जिसके लिए अभिभावक बाध्य अथवा निर्भर हो जाते हैं , कि बच्चों के व्यक्तित्व का विकास वहीं या उनही के ज़रिये सम्भव होगा ! सवाल / उपयोगिता पर नहीं है ! सवाल ज़ुरूरत पर भी नहीं है ! सवाल है उस सोच पर जो इसके लिए राजी है ! सवाल है संस्कारों के उस रोपण पर ,जो बाधित हुआ है ! सवाल है आगे बढ़ने का दावा करती हुई उस पीढ़ी से जो पिछड़ रही है ! उसे ज़ुरूरत है आत्म - निरिक्षण की ! आख़िर क्या वज़हें थी कि उन्हें अपनी किशोरावस्था में ' पर्सनालिटी डेवलपमेंट ' के लिए कहीं भी नहीं जाना पड़ा और वे उच्च शिक्षा पाकर ऊँचे पदों पर आसीन हो गए ( उनमे से कई के अभिभावक अपेक्षाकृत कम शिक्षित थे ) पर उन्हें अपनी सन्तान के लिए ' उन' क्लासेस की ज़ुरूरत है ?
_________ बड़ा आसान सा जवाब बड़े आराम और इत्मीनान से उछाला जाता है ------- ' वक्त की कमी है , काम बहुत ज़ियादह हैं ' यदि ऐसा है तो फ़िर ज़ुरूरत तो " टाइम - मैनेजमेंट " की क्लासेस की है और वो भी / अभिभावकों को ----- जिससे अगली नस्ल खरीदे हुए संस्कार की धरोहर लेकर सिर झुकाए न खड़ी हो समाज के कटघरे में , जिस पर नैतिक मूल्यों के अवमूल्यन का चार्ज हो !
__________ हम अगली post पर फ़िर से आत्म- निरिक्षण का मुद्दा ले सकते हैं लिहाज़ा ये तो महज़ विषय से तार्रुफ़ था / मेरा मुतालबा कुछ और है !
______________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
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