मन्नू मास्टर....
" भूत -प्रेत कुछ नहीं होते ! ये वहम है इनसान का ! मन का डर !और यदि होते भी हों तो वे इनसान से दूर रहना चाहते हैं " यही कहते थे मन्नू मास्टर . आज से 40 साल पहले . पर गूगल पर तो हैं ,आज भी - भूत -प्रेत -पिशाच -बेताल . सर्च कर लीजिये, एक स्निप शॉट ये है :)
वैसे गूगल पर और भी तमाम link हैं ,जिनके होने का औचित्य या उपयोगिता पर प्रश्न उठ सकता है ! लेकिन देश यूँ ही तमाम विपदाओं से घिरा है ,इस मामूली बात को इग्नोर किया जा सकता है ! स्निप शॉट देने का कोई विशेष अभिप्राय नहीं .अब चूँकि मैं उनकी बात आज इतने सालों बाद याद कर रही हूँ तो यूँ ही सर्च मार दिया की बेताल के बारे में ये साईट क्या कहता है :) मुझे मास्टर साहेब का क़िस्सा जब आ ही गया तो फ़िर उसे आप तक पहुँचाने में कोई हर्ज़ नहीं . डायरेक्ट टाइप करती हूँ आजकल ,ये सब कहीं लिख नहीं रखा इसलिए व्यवधान ज्यादा आते हैं .किसी सम्पादक या आलोचक की नज़र इनायत हुई तो ,मुझे मालूम है फ़िर मुझ जैसे कहानीकार का क्या हश्र होगा ! पर हम इतने भी कायर नहीं :)
अगर कुछ लिखना है तो लिखकर ही मन शांत होगा ! विचार को प्रवाह मिलना चाहिए ! वर्ना मानसिकता कुंठित होने का खतरा है :) मैं ये रिस्क नहीं ले सकती . मनोविज्ञान दमन के विरोध में काफी कुछ कहता है . सकारात्मक सोच को स्थान देने के लिए एक रिक्त का भाव अनिवार्य है .चिन्तन की प्रक्रिया में जिस एकांत का अवलम्बन किया जाता है वहां ये अतीत की स्मृतियाँ बाधा पैदा करती हैं ,ये मेरा अनुभव है ! बात मन से निकल जानी चाहिए . मुंह से न निकले तो लिखकर निकाल दीजिये :)
मन्नू मास्टर का हिंदी ,संस्कृत , अंग्रेज़ी , उर्दू पर वर्चस्व था .उम्र होगी कोई 70 के आसपास . उनके 7 सन्तान थी . चार बेटियाँ और 3 बेटे . सभी पढ़े -लिखे और अच्छे पदों पर ,उस समय ये सब नामुमकिन था ! बड़ा बेटा सेल टैक्स ऑफिसर था . मंझला इंदौर के सेकसरिया कोलिज का जेम्स बांड ( वो ,वहां प्रोफेसर था ) तीसरा एग्रो -इंजीनियर . एक बेटी गोल्ड मेडलिस्ट थी ( है ) दूसरी डबल m.a. ( है ) तीसरी ने भी pg किया था , वो भी है :) पर अब मन्नू मास्टर नहीं हैं ! उनका स्वर्गवास हुए ,एक अर्सा हुआ ! उनकी कही कहानियाँ - किस्से - लतीफ़े मुझे ऐसे याद हैं ,जैसे अभी सुने हों !
लेकिन आज से लगभग 40 पहले उन्होंने सुनाया था " अगिया - बैताल का किस्सा जो मुझे याद है ! एक आग का गोला उनके पास से गुज़रा था ! वो उस समय किशोर ही थे ! BSF में एक जवान की हैसियत से उन्हें भर्ती किया गया था . वे नाईट शिफ्ट में अकेले तैनात थे .
हम सबने अब तक चंदामामा ,जो एक समय की लोकप्रिय बाल -मैगज़ीन थी ,उसमें विक्रम और वेताल को पढ़ा है , टीवी पर देखा है.,,बस . पर, वो थे क्या ? इतिहास गवाह है - विक्रम थे ! पर बैताल आज भी इतिहास का हिस्सा बन सका ? नहीं ! इतिहास कोई गल्प नहीं . ये किस्से यूँ ही एकदम खत्म न होंगे ! सदी लग जाएगी .
इंदौर का एरोड्रम वाला इलाका कई सालों तक ,कई किलोमीटर सुनसान पड़ा रहा था . दिन में भी लोग उधर जाने से कतराते थे . पिलियाखाल का पुल शहर की सीमा समझी जाती थी .अब तो पचासों कालोनी कट गई सैकड़ों इमारतें बन गई और लाखों लोगों की बस्ती हो गई . सब जंगल गायब . तो अब वो भूत -प्रेत भी भाग गए होंगे ? पहले न वहां ढंग की सड़क थी न रात में लाईट की व्यवस्था . आवागमन के लिए वाहन का उपलब्ध होना तो सम्भव ही नहीं था . तब वहां भय के भूत घूमते थे ,लोगों को डर लगता था .
एरोड्रम के जस्ट पहले आता है b.s.f . जहाँ मास्टर साहेब ड्यूटी पर थे . रात में दो साथी और थे . उनसे वरिष्ठ थे .उम्र और ओहदे दोनों में . हमारे मास्टर साहेब की कम उम्री और बहादुरी का टेस्ट लिया जाना था या रेगिंग ली जा रही थी या मज़ाक की आड़ में दोनों अपनी मक्कारी को पनाह दे रहे थे ? " अच्छा बच्चा क्या रात में बिना डरे तुम अकेले गेट पर ड्यूटी दे सकते हो ? " ये सवाल था ? परिहास था ? या चुनौती ? "जवान डरते नही , डर उनसे डरता है " जीवन के संघर्ष ने जवान को निर्भीक बना दिया था .बटालियन का सबसे छोटा सदस्य था . विनम्र भी .सबका लाड़ला भी .सभी जानते थे उसके परिवार में सिवा ताऊ के कोई नहीं . उसका ब्याह हो चूका था पर गौना नहीं हुआ था . दुल्हन के मुताल्लिक सब छेड़ते भी थे , वो शरमा जाता था . उस रोज़ की रात भी सीनियर मजे ले गए थे _ " तुम चाहो तिवारी तो रात में अपने ससुराल तक जा सकते हो ,दुल्हन न दिखे घर तो दिख ही जाएगा :) हम चलते हैं ,सुबह मिलेंगे ," और दोनों चलते बने .
रात के 2 बज गए होंगे .हल्की -सी सर्दी ,जवान अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद .तभी उसने देखा एक आग का गोला ! " अरे ! ये क्या ? " पर वो गायब ! उसे लगा ,क्या वो सो गया था ? कोई सपना था ? वरना ...... तभी लपट फ़िर दिखी और गोले में तब्दील हुई ...और फ़िर गायब ! " अरे ,मैं तो जगता हूँ ,पर ये क्या था ,दूसरी बार भी गायब ,इस बार वो सतर्क था .अब बार देखने को उत्सुक ! लपट फ़िर दिखी ,उससे दूर जाती हुई . वो पीछे हो लिया .पल भर को गायब फ़िर प्रकट , कौतुहल जाग गया ! लपट बढ़ती जा रही थी गेट से दूर .... और तिवारी मन्त्र -मुग्ध -सा उसके पीछे कब हो लिया उसे ख़ुद नहीं मालूम !
ये लुका -छिपी लगभग 2 घंटे चली . 2-4 किलोमीटर दूर आ गया था जवान ,अपने गेट से .थी तो बस एक जिज्ञासा कि ये क्या तमाशा है . तभी एक भरभरी -सी आवाज़ आई _ " लड़के लौट जा " हं ? उसे अपने कानों पर यकीन न हुआ ! उसने क्या सचमुच कुछ सुना था ? या उसे धोका हुआ ? इसी कश्मकश में पीछा जारी था . तभी आवाज़ फ़िर आई - "लौट जा ... क्या जान देना चाहता है ? " b.s.f. बहुत पीछे छूट गया ,कब बीहड़ शुरू हो गया उसे तो भान ही न था ! दोनों पिलियाखाल के पुल तक आ गए थे . सुबह होने में अभी देर थी ,सीनियर नींद निकाल के आ गए थे . गेट पर से जवान गायब ,उनके तो होश उड़ गए ! कहाँ गया ? इतनी रात में ? क्या ससुराल चला गया ? दोनों उसी दिशा में भागे . तिवारी$$$$, आवाज़ रात को चीरती चली गई ,पर जवाब न आया .
दोनों जवान अब घबरा गए थे ,लड़का गया तो कहाँ आखिर ? लालटेन और टॉर्च का उजाला कम पड़ रहा होता अगर रात शुक्ल पक्ष की न होती . पुकार पर पुकार - तिवारी , तिवारी किधर हो जवा$$$$न ? जवान होता वहां तो जवाब देता ! वो तो उस आग के लुप-झुप गोले के पीछे भाग रहा था . आवाज़ का तिलिस्म उसे विचित्र रोमांचक अहसास दिला रहा था .जैसे वो अपने आपे में नहीं था . उसे मालूम ही न चला कि वो कितनी दूर चला आया है ! वो पुल से नीचे कुरी के झाँखड़ तक नाले के किनारे पहुँच गया था .ऐसा लग रहा था जैसे कोई धौकनी की तरह जब सांस छोड़ता है तब आग की लपट निकलती है ,जब सांस लेता है तब लपट गायब हो जाती है .
इस बार जब फ़िर लौटने को कहा गया तो उसे कुछ अजीब लगा ! आग ठहर गई थी .आवाज़ फ़िर आई - 'लौट जा ,मानता क्यूँ नहीं ?" तिवारी के शरीर में झुरझुरी -सी दौड़ उठी ,वो किसके पीछे है ? कहाँ आ गया है ? ये तो पुल के नीचे का भाग है .उसने पूरा साहस जुटा के पूछा - " कौन हो तुम ... बोलो$$$ कौन हो ?" " लड़के ,अगिया हूँ मैं " आवाज़ नाला पार कर गई थी . जवान होश में आते ही बेहोश होकर गिर पड़ा . दांत बंध गए . मुट्ठियाँ भिंच गई . साथी आ गए थे .उसे हिला रहे थे - " उठो यार ! यहाँ कैसे आ गए ? क्या हुआ है ? कौन था वहां बताने वाला की क्या हुआ था ? और क्या बाकी था . तिवारी होश में लौट आया था ! सवाल पर सवाल दागे जा रहे थे ! जवाब होकर भी जैसे उसके पास नहीं था ! आपके पास है ,जवाब ? आज तन्त्र -साधकों और औगढ विद्या वाले तथा कुछ हठ योगी टाइप के लोग कुम्भ के मेले में मिल जाएँगे ,इस सत्य की पुष्टि के लिए ! पर अब उन लोगों में भी पाखंड व्याप गया है .
मन्नू मास्टर अतीत से निकल कर बच्चों को यही समझा रहे थे - " सब माया हैं ,मन का धोका !भूत -वूत नहीं होते ! न ऐताल -बैताल , ईश्वर सबकी रक्षा करे ! चलो जावौ अबै आपन -आपन घरे :) "
----------------------------- डॉ.प्रतिभा स्वाति
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