बीतीं बीस , सदी इक्कसवीं ,
साल अठरवां लागा रे !
खुली गहन निद्रा क्या बोलो ,
इनसान सहज ही जागा रे ?
उलटी छत पर पड़ी पतंग ,
टूटा जबसे धागा रे !
चिड़िया को बस दाना-दुनका , (पक्षी-गण सब भूखे -प्यासे )
मोती चुगता कागा रे !
लो साल अठरवां लागा रे !!!
समय सरित का भीषण वेग ,
बह गए जाने कितने साल !
उड़ गई कब सोने की चिड़िया ,
मेरा देश हुआ, इतना कंगाल !
लोकतंत्र में नित -नए चोचले ,
हाय ! हमें भरमाते हैं !
उजले वस्त्रों में नेतागण ,
सभी कलंक छुपाते हैं !
रोजगार की बाँट जोहता ,
दर-दर युवा भटक रहा !
घोषणाओं का बजे ढिढोरा ,
जन -मानस को खटक रहा !
वो अच्छे दिन ,कब आएँगे ?
बन से कब लौटेंगे राम ?
इधर कुआं उधर खाई है ,
सरहद पर हर-दिन कोहराम !
बिना हवा के कबसे बोलो ?
ये कैसी उड़ रही पतंग ?
चोर -चोर मौसेरे भाई ...
कैसे इनमें छिड़ गई जंग ?
वोट -नोट मुक्तक सब ,
चुनाव में चुगता कागा रे !
बीतीं बीस ,सदी इक्कसवीं ,
साल अठरवां लागा रे !
लो साल अठरवां लागा रे !!!
_______________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
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