दिनेश
एक होता है योगी ,दूसरा योग -गुरु फ़िर योग -विशेषग्य फ़िर योग - टीचर और सेकेण्ड लास्ट में आता है योग -ट्रेनर और अंत में आते हैं वे सब जिन्होंने योग शब्द सुना और सलाह बांटने लगे :) सभी योग से जुड़े हैं बस आपस में थोड़ा -थोड़ा फ़र्क है . ठीक उसी तरह जिस तरह किसी क्लास में होता है - मोनिटर ... टीचर .... लेक्चरर ..... प्रोफ़ेसर .... h.o.d और कुलपति :) विज्ञ -जन तुलना में श्रंखला के क्रम को उलटकर पढ़ें , एक तरफ अवरोह और दूसरी तरफ अवरोह है !
लिखी गई बात बस गद्य है यही मानिये .भाषा शैली , भाव ,उद्देश्य ,कथानक और कथोपकथन की तुला से डर जाती हूँ . भले न कहें कहानी इसे . संस्मरण , आत्म -कथा या सत्यकथा कह लीजिये . लेख या नाट्य अथवा एकांकी की विषयवस्तु आपको मिल सकती है . हुजूर इसे मेरी डायरी का अंश मान लीजिये या फ़िर मेरी जीवनी में इसका जिक्र हो सकता है :) जो भी हो मैं अपने घर में अपने बजट और रूचि के मुताबिक कुछ पकाने का हक रखती हूँ , अतिथि को वही मिलेगा जो मेरे पास है ! मेरे ब्लॉग पर आपका सदैव स्वागत है :)
दिनेश - उम्र लगभग 35 - व्यवसाय कारपेंटर - रहवासी इंदौर . लो हो गया पात्र परिचय ! पर बात उज्जैन की है . सेवाधाम की . हाँ वही सुधीर भाई गोयल का आश्रम . मैं वहां गई थी एक माह के लिए , पर लौट आई बीस दिन में और मुझे आग्रह किया जा रहा था कि 6 माह रुक जाऊं . हाँ मुझे मालूम है आप बोर हो रहे हैं , सच के ख़ुलासे रोचक न भी हों सनसनीखेज होते हैं .
क्या आप यकीन करेंगे की दिनेश सेवाधाम में पागलों के बीच तालाबंद कमरे में चार माह कैद रहा .... बलात ....और उसके घर वालों ने उसे मृत मान लिया . वो जीवित था , सेवाधाम में ? कहिये बताऊँ पूरा वाकया ?
सेवाधाम में योग -कक्षा लेते अभी दूसरा दिन ही हुआ था . मुझे लगा दाल में काला कुछ ज्यादा है ! एक दस्ता मेरी निगरानी में मुसतैद है , आख़िर क्यूँ दिनभर में कई बार ये खयाल आया और मुझे खुदसे कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला ! फ़िर जब भी क्लास खत्म होती पीछे से एक पर्ची मेरी तरफ फेंकी जाती ! पीछे की कतार में अधिकांश अर्ध -विक्षिप्त पुरुष बैठे होते थे , मै उनसे मन ही मन डरती थी ,सतर्क रखती थी ख़ुद को . एक दिन शाम के झुटपुटे में आसन लपेटते समय मैंने चुपचाप वो कागज़ उठाकर ट्रेकसूट में छुपा लिया . वो पर्ची दिनेश की थी . उसने अपनी बहन का mob no लिखा था और साथ में ये निवेदन किया था की मैं उसके जीवित होने और सेवाधाम में उसके कैद होने की बात उनसे से कह दूँ .
मैं देख रही थी , सेवाधाम में कुछ लोग कैद थे .अपनी तरफ से कई ने निकल भागने की नाकाम कोशिश की थी . एक दिन अवसर मिला तब दिनेश से पूछा -" तुम यहाँ कैसे आए ? उसने बताया - मैं करपेंटर हूँ .इंदौर में मेरे 3 बच्चे और पत्नी रोते होंगे , किसी को नहीं मालूम मैं यहाँ के पागलखाने में बन्द हूँ . " मेरे सवाल का जवाब उसने अब तक नहीं दिया था . मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी .आश्रम के डायरेक्टर सुधीर भाई गोयल और मैनेजर प्रमोद भाई उस समय बाहर गए हुए थे . बाकी सदस्य सुरक्षा गार्ड उस मौके का लाभ लेने के लिए मक्कारी मार रहे थे .
मैं तुलसी वन तैयार करवा रही थी . खाली समय में अपना ब्राम्हण धर्म निभा रही थी :) दिनेश भी खुरपी लेकर मजदूरों में शामिल हो गया था . पागलों की गिनती शाम 6 बजे होती थी .तालाबन्द करने से पहले . अंदर के सारे सचमुच के पागल थे , आक्रामhक किस्म के ,जो उसकी पिटाई करते थे .कपड़े फाड़ दिए थे . कम्बल में खटमल ... कमरे में मच्छर ... अँधेरा ... पीने को जो पानी दिया जाता था उसमें नींद की दवा मिला दी जाती थी . इस यातना ने और भय ने एक अच्छे भले कारपेंटर को पागल की शक्ल दे दी थी . वो हताश था . पर उम्मीद उसमे बाकी थी ,वो पूरे होश में था .
सेवाधाम आश्रम में सुधीर भाई गोयल सेवा की आड़ में जो कुछ कर रहे थे , उससे किसी का भी खून खौल सकता है . जो लोग भुगत रहे थे , उसे जानकर मेरे रोगटे खड़े हो गए . रोज एक नई कहानी मेरे सामने आ रही थी . मेरा जमीर मुझे ललकार रहा था . वहां भला किसे योग की ज़ुरूरत थी ? जो लोग वहां मौज़ूद थे , सब मज़बूरी के मारे ,जिनका कोई आसरा नहीं था या फ़िर जिन्हें फंसा लिया गया था निपुण समाजसेवी द्वारा . और भी कुछ लोगों में भाग निकलने की तड़प थी .
दिनेश ने बताया कि वो तो इंदौर से उज्जैन अपनी बहन से राखी बंधवाने आया था . कुछ पुराने दोस्त मिल गए तो पिला दी . थोड़ी ज्यादा पी थी तो लड़खड़ाकर गटर में गिर गया .इतने में पुलिस की गाड़ी गश्त को निकली तो दोस्त छुप गए . पुलिस गई और दोस्त आके निकालते उसके पहले ही सेवाधाम वालों ने उसे अपनी जीप में डाला और यहाँ लाकर बन्द कर दिया . उसका रोना मुझे गुस्सा दिला रहा था .... वाह गजब का n.g.o. है !
------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति
( फ़िर उससे मुलाकात नहीं हुई ,उसे और संदीप को वहां से निकालने के लिए मुझे पुलिस की हेल्प लेनी पड़ी थी .संदीप मेरा अगला पात्र )
एक होता है योगी ,दूसरा योग -गुरु फ़िर योग -विशेषग्य फ़िर योग - टीचर और सेकेण्ड लास्ट में आता है योग -ट्रेनर और अंत में आते हैं वे सब जिन्होंने योग शब्द सुना और सलाह बांटने लगे :) सभी योग से जुड़े हैं बस आपस में थोड़ा -थोड़ा फ़र्क है . ठीक उसी तरह जिस तरह किसी क्लास में होता है - मोनिटर ... टीचर .... लेक्चरर ..... प्रोफ़ेसर .... h.o.d और कुलपति :) विज्ञ -जन तुलना में श्रंखला के क्रम को उलटकर पढ़ें , एक तरफ अवरोह और दूसरी तरफ अवरोह है !
लिखी गई बात बस गद्य है यही मानिये .भाषा शैली , भाव ,उद्देश्य ,कथानक और कथोपकथन की तुला से डर जाती हूँ . भले न कहें कहानी इसे . संस्मरण , आत्म -कथा या सत्यकथा कह लीजिये . लेख या नाट्य अथवा एकांकी की विषयवस्तु आपको मिल सकती है . हुजूर इसे मेरी डायरी का अंश मान लीजिये या फ़िर मेरी जीवनी में इसका जिक्र हो सकता है :) जो भी हो मैं अपने घर में अपने बजट और रूचि के मुताबिक कुछ पकाने का हक रखती हूँ , अतिथि को वही मिलेगा जो मेरे पास है ! मेरे ब्लॉग पर आपका सदैव स्वागत है :)
दिनेश - उम्र लगभग 35 - व्यवसाय कारपेंटर - रहवासी इंदौर . लो हो गया पात्र परिचय ! पर बात उज्जैन की है . सेवाधाम की . हाँ वही सुधीर भाई गोयल का आश्रम . मैं वहां गई थी एक माह के लिए , पर लौट आई बीस दिन में और मुझे आग्रह किया जा रहा था कि 6 माह रुक जाऊं . हाँ मुझे मालूम है आप बोर हो रहे हैं , सच के ख़ुलासे रोचक न भी हों सनसनीखेज होते हैं .
क्या आप यकीन करेंगे की दिनेश सेवाधाम में पागलों के बीच तालाबंद कमरे में चार माह कैद रहा .... बलात ....और उसके घर वालों ने उसे मृत मान लिया . वो जीवित था , सेवाधाम में ? कहिये बताऊँ पूरा वाकया ?
सेवाधाम में योग -कक्षा लेते अभी दूसरा दिन ही हुआ था . मुझे लगा दाल में काला कुछ ज्यादा है ! एक दस्ता मेरी निगरानी में मुसतैद है , आख़िर क्यूँ दिनभर में कई बार ये खयाल आया और मुझे खुदसे कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला ! फ़िर जब भी क्लास खत्म होती पीछे से एक पर्ची मेरी तरफ फेंकी जाती ! पीछे की कतार में अधिकांश अर्ध -विक्षिप्त पुरुष बैठे होते थे , मै उनसे मन ही मन डरती थी ,सतर्क रखती थी ख़ुद को . एक दिन शाम के झुटपुटे में आसन लपेटते समय मैंने चुपचाप वो कागज़ उठाकर ट्रेकसूट में छुपा लिया . वो पर्ची दिनेश की थी . उसने अपनी बहन का mob no लिखा था और साथ में ये निवेदन किया था की मैं उसके जीवित होने और सेवाधाम में उसके कैद होने की बात उनसे से कह दूँ .
मैं देख रही थी , सेवाधाम में कुछ लोग कैद थे .अपनी तरफ से कई ने निकल भागने की नाकाम कोशिश की थी . एक दिन अवसर मिला तब दिनेश से पूछा -" तुम यहाँ कैसे आए ? उसने बताया - मैं करपेंटर हूँ .इंदौर में मेरे 3 बच्चे और पत्नी रोते होंगे , किसी को नहीं मालूम मैं यहाँ के पागलखाने में बन्द हूँ . " मेरे सवाल का जवाब उसने अब तक नहीं दिया था . मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी .आश्रम के डायरेक्टर सुधीर भाई गोयल और मैनेजर प्रमोद भाई उस समय बाहर गए हुए थे . बाकी सदस्य सुरक्षा गार्ड उस मौके का लाभ लेने के लिए मक्कारी मार रहे थे .
मैं तुलसी वन तैयार करवा रही थी . खाली समय में अपना ब्राम्हण धर्म निभा रही थी :) दिनेश भी खुरपी लेकर मजदूरों में शामिल हो गया था . पागलों की गिनती शाम 6 बजे होती थी .तालाबन्द करने से पहले . अंदर के सारे सचमुच के पागल थे , आक्रामhक किस्म के ,जो उसकी पिटाई करते थे .कपड़े फाड़ दिए थे . कम्बल में खटमल ... कमरे में मच्छर ... अँधेरा ... पीने को जो पानी दिया जाता था उसमें नींद की दवा मिला दी जाती थी . इस यातना ने और भय ने एक अच्छे भले कारपेंटर को पागल की शक्ल दे दी थी . वो हताश था . पर उम्मीद उसमे बाकी थी ,वो पूरे होश में था .
सेवाधाम आश्रम में सुधीर भाई गोयल सेवा की आड़ में जो कुछ कर रहे थे , उससे किसी का भी खून खौल सकता है . जो लोग भुगत रहे थे , उसे जानकर मेरे रोगटे खड़े हो गए . रोज एक नई कहानी मेरे सामने आ रही थी . मेरा जमीर मुझे ललकार रहा था . वहां भला किसे योग की ज़ुरूरत थी ? जो लोग वहां मौज़ूद थे , सब मज़बूरी के मारे ,जिनका कोई आसरा नहीं था या फ़िर जिन्हें फंसा लिया गया था निपुण समाजसेवी द्वारा . और भी कुछ लोगों में भाग निकलने की तड़प थी .
दिनेश ने बताया कि वो तो इंदौर से उज्जैन अपनी बहन से राखी बंधवाने आया था . कुछ पुराने दोस्त मिल गए तो पिला दी . थोड़ी ज्यादा पी थी तो लड़खड़ाकर गटर में गिर गया .इतने में पुलिस की गाड़ी गश्त को निकली तो दोस्त छुप गए . पुलिस गई और दोस्त आके निकालते उसके पहले ही सेवाधाम वालों ने उसे अपनी जीप में डाला और यहाँ लाकर बन्द कर दिया . उसका रोना मुझे गुस्सा दिला रहा था .... वाह गजब का n.g.o. है !
------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति
( फ़िर उससे मुलाकात नहीं हुई ,उसे और संदीप को वहां से निकालने के लिए मुझे पुलिस की हेल्प लेनी पड़ी थी .संदीप मेरा अगला पात्र )
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