सविता
एक बात आज स्पष्ट कर ही दूँ , फ़िर सोचती हूँ चलो रहने दो , क्या फर्क पड़ता है ? पर फ़र्क तो पड़ता है :) अभी टाइप कर रही थी और जाने कौन -सा बटन अनजाने में दब गया और 4-6 लाइन गायब हो गई ..... सारा शगुन बिगड़ गया .
रजिस्टर में लिखो तो सामग्री गायब नहीं होती . पर ........ पर रजिस्टर गायब हो जाता है :) कुछ गायब हो तब मूड ख़राब हो जाता है . यदि कुछ गायब न हो तब ? तब क्या सब ठीक रहेगा ? मूड तब भी खराब हो सकता है . अभी एक शब्द टाइप नही हो पा रहा था , मुश्किल आई तो फ़िर दिमाग खराब . दरवाज़ा बन्द है बाहर से सविता की आवाज़ आ रही है ,मेरे लिए लिखना फ़िर मुश्किल हो रहा है . इतनी देर में 10 हाइकू टाइप हो जाते .
अभी कहानी में पात्र की एंट्री भी नहीं हुई .कथानक का आरोह है ये ? आरोह ही होगा .चरम इतनी जल्दी , इतने से में सम्भव है क्या ? लघुकथा होती तो इतना लिखने पर अवरोह भी हो जाता :) पर उसके लिए दिमाग धारदार होना चाहिए , वो कहाँ से लाऊं ? मन तो बच्चा है मेरा :) बचपन चला गया तो क्या हुआ . शायद इसलिए मै बच्चो के मन को बड़ी होकर भी अच्छे - से समझ लेती हूँ . बड़े लोग मेरी समझ में कम आते हैं .और यदि कोई बुद्धिमान हुआ तो ,वह तो बिलकुल ही समझ नहीं आता . सच कहूँ तो उनसे मै भयभीत -सी हो जाती हूँ .अब देखिये दो बार "मैं" को "मै " लिख गई हूँ . झुन्झलाह्ट होती है ऐसे में .टाइप करने की स्पीड का पूछिए मत ,वही पांच साल पहले की है .इतना लिखने में उकता गई हूँ . अब कल लिखूं तो कैसा रहे ? जैसे पिछली पोस्ट में पंकज को एडिट क्लिक करके आगे बढाती गई उसी तरह सविता से भी मिलवा ही दूंगी .
वैसे सविता कोई इतना महत्वपूर्ण चरित्र नहीं ,जिसपर मैं अपना वक्त बर्बाद करूँ . पर जब भी दरवाज़ा खोलती हूँ सामने उसके किचन की खिड़की दिखती है और उसी तरफ वो भी .... फिल्म के किसी किरदार की तरह . जहाँ नायिका कितनी भी गरीब हो ,उसके वस्त्र और श्रंगार का पूरा ध्यान रखा जाता है . वरना आज मध्यम वर्गीय महिला कहाँ झाड़ू - पोछा - बर्तन करती है ? घर में 3-3 बच्चे, उनमें से एक एबनार्मल और पति .
सवाल यह उठता है कि , जब सोनोग्राफी हुई तब डॉक्टर ने ये बताया होगा कि ट्विन्स हैं , दोनों लड़के और वे ये नहीं बता पाए कि उनमे से एक "विशेष ' है .हो सकता है बताया भी हो पर तब एबार्शन में दोनों ही से हाथ धोना पड़ता . अब बोलो राजन ? समाज को लाभ हुआ की हानि ? बच्चो को भगवान की देन मानती है सविता .मैं मुग्ध हो गई उसकी इस मासूमियत पर :) बहुत तेज है हमारी सविता वाट्सअप पर उसका ग्रुप है ,हाँ ! किटी क्लब की मेम्बर भी है :) सुबह और शाम नियम से समय निकालती है पंचायत के लिए . बिना रुके बोलती है हाथ की मुद्राएँ बनाकर , कई बार एक बात को दो बार भी , हो सकता है एक बार में सामने वाला सुन न पाया हो या फ़िर समझ न पाया हो उस दो कौड़ी की बात को . उसने मुझसे पूछा था उस दिन ---" आप क्या करते हो ? मैंने कहा ,कुछ नहीं ." तो फ़िर बाहर क्यूँ नी आते ? मैंने कहा ,यूँ ही " शायद मेरा जवाब रुखा था .
फ़िर करवाचौथ पर मेरे पैर छूने आई ,जाने कैसे उसे पता चला कि मैं उससे बड़ी हूँ , हमारी इस सोसायटी में बड़ों के पैर छूने का चलन है . मैं जब छोटी थी तब समाज में कन्या - बहन - भांजी के चरण- स्पर्श का चलन था :) उस वार्ता के रूखे जवाब के अफ़सोस में या एवज के आशीर्वाद में मैंने उसे साऊथ - कॉटन का सूट उपहार के तौर पर दिया तो ख़ुश हो गई . लेकिन इस बार फ़िर मुझसे चूक हो गई मैनें उसे दरवाजे ही से लौटा दिया था !
इस जघन्य पाप के प्रायश्चित का मौका काफ़ी दिन बाद मिला .तब ,जब उसके बेटे का बर्थडे आया ,मुझे सामने वाली खिड़की से न्यौता आया --- " आपको शाम को आना है 6 बजे , मैंने अफ़सोस जाहिर किया - मैं थोड़ा लेट हो जाउंगी " शाम को पहले बाजार जाकर 400 का कैरम बोर्ड ख़रीदा और देकर आई तब पूरा परिवार फ़िर ख़ुश हो गया :)
क्या ख़ुशी उपहार की मोहताज है ? पड़ोसी -धर्म यूँ निर्वाह किया जाता है ? लेन- देन हर जगह चलता है . होटल में टिप .दफ्तर में घूस . बॉस को चमचागिरी सास को चापलूस बहू विथ ..... पसंद आती है .
अभी धुप का एक बड़ा -सा टुकड़ा कोरिडोर पर आया .मेरे पड़ोस के दरवाजे पर .दरवाज़ा बन्द था मैं जाकर खड़ी हो गई ( एक अपराधबोध के साथ ) अंदर चर्चा चल रही थी . चर्चा नहीं सविता का विश्लेषण हो रहा था . उसकी सहेलियाँ उसीकी खिल्ली उड़ा रही थी ." मुंह पर पुताई करके झाइयां छुपाती है मैंने देखा उसे सुबह .दूसरा स्वर अरे कोहनियाँ एकदम काली हो रक्खी हैं .पहले वाली फ़िर बोली फ़टी हुई एडियाँ और बर्तन वाली बाई जैसे हाथ ,हा -हा - हा "और फ़टी हुई आवज़ भूल गई ,दूसरी ने थेगला लगाया "
धूप चली गई ,पर मैं क्यूँ गई ऐसी धूप में ? जहाँ उसपार ऐसी सखियाँ थीं . क्या टाइम -पास यूँ किया जाता है ? घर में कदम रखा तो बेटी किताब पढ़ रही थी ,अपनी धुन में ____
इक चिड़िया के बच्चे चार ..
घर से निकले पंख पसार !
पूरब से पश्चिम को जाएं ...
पश्चिम से पूरब को जाएं !
घूम लिया है जग सारा ...
अपना घर है सबसे प्यारा !
" अपना घर है सबसे प्यारा " मैंने उसके सुर में सुर मिलाया वो बोली चिड़िया का घर है भी सबसे प्यारा और आकर लिपट गई ..... मैं भूल गई उस निर्दोष स्नेहिल स्पर्श से वो निंदा स्तुति .... सच , अपना घर है सबसे प्यारा :)
____________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
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एक बात आज स्पष्ट कर ही दूँ , फ़िर सोचती हूँ चलो रहने दो , क्या फर्क पड़ता है ? पर फ़र्क तो पड़ता है :) अभी टाइप कर रही थी और जाने कौन -सा बटन अनजाने में दब गया और 4-6 लाइन गायब हो गई ..... सारा शगुन बिगड़ गया .
रजिस्टर में लिखो तो सामग्री गायब नहीं होती . पर ........ पर रजिस्टर गायब हो जाता है :) कुछ गायब हो तब मूड ख़राब हो जाता है . यदि कुछ गायब न हो तब ? तब क्या सब ठीक रहेगा ? मूड तब भी खराब हो सकता है . अभी एक शब्द टाइप नही हो पा रहा था , मुश्किल आई तो फ़िर दिमाग खराब . दरवाज़ा बन्द है बाहर से सविता की आवाज़ आ रही है ,मेरे लिए लिखना फ़िर मुश्किल हो रहा है . इतनी देर में 10 हाइकू टाइप हो जाते .
अभी कहानी में पात्र की एंट्री भी नहीं हुई .कथानक का आरोह है ये ? आरोह ही होगा .चरम इतनी जल्दी , इतने से में सम्भव है क्या ? लघुकथा होती तो इतना लिखने पर अवरोह भी हो जाता :) पर उसके लिए दिमाग धारदार होना चाहिए , वो कहाँ से लाऊं ? मन तो बच्चा है मेरा :) बचपन चला गया तो क्या हुआ . शायद इसलिए मै बच्चो के मन को बड़ी होकर भी अच्छे - से समझ लेती हूँ . बड़े लोग मेरी समझ में कम आते हैं .और यदि कोई बुद्धिमान हुआ तो ,वह तो बिलकुल ही समझ नहीं आता . सच कहूँ तो उनसे मै भयभीत -सी हो जाती हूँ .अब देखिये दो बार "मैं" को "मै " लिख गई हूँ . झुन्झलाह्ट होती है ऐसे में .टाइप करने की स्पीड का पूछिए मत ,वही पांच साल पहले की है .इतना लिखने में उकता गई हूँ . अब कल लिखूं तो कैसा रहे ? जैसे पिछली पोस्ट में पंकज को एडिट क्लिक करके आगे बढाती गई उसी तरह सविता से भी मिलवा ही दूंगी .
वैसे सविता कोई इतना महत्वपूर्ण चरित्र नहीं ,जिसपर मैं अपना वक्त बर्बाद करूँ . पर जब भी दरवाज़ा खोलती हूँ सामने उसके किचन की खिड़की दिखती है और उसी तरफ वो भी .... फिल्म के किसी किरदार की तरह . जहाँ नायिका कितनी भी गरीब हो ,उसके वस्त्र और श्रंगार का पूरा ध्यान रखा जाता है . वरना आज मध्यम वर्गीय महिला कहाँ झाड़ू - पोछा - बर्तन करती है ? घर में 3-3 बच्चे, उनमें से एक एबनार्मल और पति .
सवाल यह उठता है कि , जब सोनोग्राफी हुई तब डॉक्टर ने ये बताया होगा कि ट्विन्स हैं , दोनों लड़के और वे ये नहीं बता पाए कि उनमे से एक "विशेष ' है .हो सकता है बताया भी हो पर तब एबार्शन में दोनों ही से हाथ धोना पड़ता . अब बोलो राजन ? समाज को लाभ हुआ की हानि ? बच्चो को भगवान की देन मानती है सविता .मैं मुग्ध हो गई उसकी इस मासूमियत पर :) बहुत तेज है हमारी सविता वाट्सअप पर उसका ग्रुप है ,हाँ ! किटी क्लब की मेम्बर भी है :) सुबह और शाम नियम से समय निकालती है पंचायत के लिए . बिना रुके बोलती है हाथ की मुद्राएँ बनाकर , कई बार एक बात को दो बार भी , हो सकता है एक बार में सामने वाला सुन न पाया हो या फ़िर समझ न पाया हो उस दो कौड़ी की बात को . उसने मुझसे पूछा था उस दिन ---" आप क्या करते हो ? मैंने कहा ,कुछ नहीं ." तो फ़िर बाहर क्यूँ नी आते ? मैंने कहा ,यूँ ही " शायद मेरा जवाब रुखा था .
फ़िर करवाचौथ पर मेरे पैर छूने आई ,जाने कैसे उसे पता चला कि मैं उससे बड़ी हूँ , हमारी इस सोसायटी में बड़ों के पैर छूने का चलन है . मैं जब छोटी थी तब समाज में कन्या - बहन - भांजी के चरण- स्पर्श का चलन था :) उस वार्ता के रूखे जवाब के अफ़सोस में या एवज के आशीर्वाद में मैंने उसे साऊथ - कॉटन का सूट उपहार के तौर पर दिया तो ख़ुश हो गई . लेकिन इस बार फ़िर मुझसे चूक हो गई मैनें उसे दरवाजे ही से लौटा दिया था !
इस जघन्य पाप के प्रायश्चित का मौका काफ़ी दिन बाद मिला .तब ,जब उसके बेटे का बर्थडे आया ,मुझे सामने वाली खिड़की से न्यौता आया --- " आपको शाम को आना है 6 बजे , मैंने अफ़सोस जाहिर किया - मैं थोड़ा लेट हो जाउंगी " शाम को पहले बाजार जाकर 400 का कैरम बोर्ड ख़रीदा और देकर आई तब पूरा परिवार फ़िर ख़ुश हो गया :)
क्या ख़ुशी उपहार की मोहताज है ? पड़ोसी -धर्म यूँ निर्वाह किया जाता है ? लेन- देन हर जगह चलता है . होटल में टिप .दफ्तर में घूस . बॉस को चमचागिरी सास को चापलूस बहू विथ ..... पसंद आती है .
अभी धुप का एक बड़ा -सा टुकड़ा कोरिडोर पर आया .मेरे पड़ोस के दरवाजे पर .दरवाज़ा बन्द था मैं जाकर खड़ी हो गई ( एक अपराधबोध के साथ ) अंदर चर्चा चल रही थी . चर्चा नहीं सविता का विश्लेषण हो रहा था . उसकी सहेलियाँ उसीकी खिल्ली उड़ा रही थी ." मुंह पर पुताई करके झाइयां छुपाती है मैंने देखा उसे सुबह .दूसरा स्वर अरे कोहनियाँ एकदम काली हो रक्खी हैं .पहले वाली फ़िर बोली फ़टी हुई एडियाँ और बर्तन वाली बाई जैसे हाथ ,हा -हा - हा "और फ़टी हुई आवज़ भूल गई ,दूसरी ने थेगला लगाया "
धूप चली गई ,पर मैं क्यूँ गई ऐसी धूप में ? जहाँ उसपार ऐसी सखियाँ थीं . क्या टाइम -पास यूँ किया जाता है ? घर में कदम रखा तो बेटी किताब पढ़ रही थी ,अपनी धुन में ____
इक चिड़िया के बच्चे चार ..
घर से निकले पंख पसार !
पूरब से पश्चिम को जाएं ...
पश्चिम से पूरब को जाएं !
घूम लिया है जग सारा ...
अपना घर है सबसे प्यारा !
" अपना घर है सबसे प्यारा " मैंने उसके सुर में सुर मिलाया वो बोली चिड़िया का घर है भी सबसे प्यारा और आकर लिपट गई ..... मैं भूल गई उस निर्दोष स्नेहिल स्पर्श से वो निंदा स्तुति .... सच , अपना घर है सबसे प्यारा :)
____________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
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