कान्ह - कान्ह रटते सूर ...
कृष्ण कुटिर -द्वार पर !
दिव्य -दृष्टि वरदान में ले ...
आए करुण पुकार पर !
राधिका भी साथ थीं ..
अधर वक्र मुस्कान थी !
भाव भक्त का तौलतीं ...
भक्ति से अनजान थीं !
और क्या कुछ चाहिए...
पूछिये प्रभु इनसे ज़रा !
हुए विव्हल कृष्ण भी ....
मिला सूर से उत्तर खरा !
दिव्य -दृष्टि से तुमको देखा ...
प्रभु और न कछु चाहिए !
इस छबी पर मर मिटा मैं ...
वरदान प्रभु ले जाइये !
तनिक लज्जित थीं राधिका ...
उलझा दिया था प्रश्न ने !
भक्त मेरे ,मैं भक्त का ...
उर से लगाया कृष्ण ने !
_________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
कृष्ण कुटिर -द्वार पर !
दिव्य -दृष्टि वरदान में ले ...
आए करुण पुकार पर !
राधिका भी साथ थीं ..
अधर वक्र मुस्कान थी !
भाव भक्त का तौलतीं ...
भक्ति से अनजान थीं !
और क्या कुछ चाहिए...
पूछिये प्रभु इनसे ज़रा !
हुए विव्हल कृष्ण भी ....
मिला सूर से उत्तर खरा !
दिव्य -दृष्टि से तुमको देखा ...
प्रभु और न कछु चाहिए !
इस छबी पर मर मिटा मैं ...
वरदान प्रभु ले जाइये !
तनिक लज्जित थीं राधिका ...
उलझा दिया था प्रश्न ने !
भक्त मेरे ,मैं भक्त का ...
उर से लगाया कृष्ण ने !
_________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
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