कितना मुश्किल है अपनी बात सबपर ज़ाहिर करना .... कैसे लिखते हैं लोग आत्मकथा ,क्या 100 % सच लिख पाते हैं ? ज़िन्दगी कभी आईने से भी मुंह चुराती है ... मै जिस दौर से गुज़र रही हूँ ख़ुदा वाकिफ़ है या मै ख़ुद ! मैं कहाँ से जुटाऊं हिम्मत उस सच के मुज़ाहिरे के लिए जिसके सुबूत तलवार की तरह हर पल मेरे सिर पर लटकते हैं ! संकेत करती हूँ ,मगर नाकाम ....कुछ का कुछ मतलब निकाला जाता है ! फिर ?
_________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
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