आज सुबह ही से ' कबीर ' बड़े याद आ रहे हैं ,जैसे हिंदी फिल्मों में मेले में बिछड़े भाई हों मेरे :) इसलिए ये तय रहा कि आज इस पोस्ट पर प्रत्यक्ष या परोक्ष उनका प्रभाव रहेगा ! बातें उतनी खरी नहीं कह पाऊँगी पर जो सुबह से उनको गुनगुनाए जा रही हूँ .....उससे निज़ात के लिए दिल का ग़ुबार निकालना तो होगा :)
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____ बुरा जो देखन मैं चला .......
_____बड़ा हुआ तो क्या हुआ........
_____ लकड़ी जल कोइला भई .....
_____ दो पाटन के बीच में ....
_____ पत्ता टूटा डाल से ......
_____________________________ जारी
_____________________________________डॉ. प्रतिभा स्वाति
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