______________ कितना अजीब है जीवन मुसलसल , औसतन , पहले की बनिसबद छोटा और महंगा होता जा रहा है . प्राथमिकताएँ तेजी से बदल रही हैं . नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन हो रहा है . जो चीज़ें कुदरतन हमें नेमत की तरहा हासिल थीं हम उन्हें खोते जा रहे हैं , मसलन हवा और पानी !
___________ रोटी -कपड़ा और मकान से काम नहीं चल रहा . सब कुछ इस कदर मशीनी हो गया है , वो दिन दूर नहीं जब हम mob और tv को अपनी बॉडी में ट्रान्स्प्लान्ट करवाना चाहेंगे ! कुल मिलाकर मतलब परस्ती के इस दौर में लाभ और लोभ के गणित ने ज़िंदगी के सारे समीकरण चौपट कर दिए हैं !
_____________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
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