शनिवार, जून 18, 2016

ज़िंदगी के हिसाब ....


______________ कितना अजीब है जीवन मुसलसल , औसतन , पहले की बनिसबद छोटा और महंगा  होता  जा रहा है . प्राथमिकताएँ  तेजी से बदल रही हैं . नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन  हो रहा है . जो   चीज़ें   कुदरतन हमें नेमत की तरहा  हासिल थीं हम उन्हें  खोते जा रहे हैं , मसलन  हवा और पानी !
___________ रोटी -कपड़ा और मकान से काम नहीं चल रहा . सब कुछ इस कदर मशीनी हो गया है , वो दिन दूर नहीं जब हम mob और tv को अपनी बॉडी में ट्रान्स्प्लान्ट करवाना  चाहेंगे ! कुल मिलाकर  मतलब परस्ती के इस दौर में लाभ और लोभ के गणित ने ज़िंदगी के सारे  समीकरण  चौपट कर दिए  हैं !
_____________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति  

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