इसमें अचम्भित होने जैसा कुछ भी नहीं !
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अंतर में , निरंतर
जब भी / एक भाव ,
बहता है !
शेष कुछ भी / कभी
विशेष
नहीं रहता है !
वही भाव और अभाव !
बन जाता है स्वभाव !
कहानी हो , गीत हो !
मौन हो , बातचीत हो !
लाख हों ,तर्क -वितर्क !
पर नहीं पड़ता फ़र्क !
माँ , जो तब, ज़िद पे
बहलाती थी !
उतने सारे झूठ वो ,
कहाँ से लाती थी ?
सीखा होगा , उन्होंने
अपनी माँ से !
बेटी जानती है झूठ
आया कहाँ से !
इस झूठ को , माँ
भूल जाती है जब !
सच समझा देती है
बड़े हो गए हो अब !
लेकिन सच ,सचमुच
समझ नहीं आता है !
बूढ़े माँ- बाप को बच्चा
बेवकूफ़ बनाता है !
बस यहाँ मेरी बात
अब पूरी हो चुकी है !
बेवकूफ बनना मेरी
मज़बूरी हो चुकी है !
_____________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
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अंतर में , निरंतर
जब भी / एक भाव ,
बहता है !
शेष कुछ भी / कभी
विशेष
नहीं रहता है !
वही भाव और अभाव !
बन जाता है स्वभाव !
कहानी हो , गीत हो !
मौन हो , बातचीत हो !
लाख हों ,तर्क -वितर्क !
पर नहीं पड़ता फ़र्क !
माँ , जो तब, ज़िद पे
बहलाती थी !
उतने सारे झूठ वो ,
कहाँ से लाती थी ?
सीखा होगा , उन्होंने
अपनी माँ से !
बेटी जानती है झूठ
आया कहाँ से !
इस झूठ को , माँ
भूल जाती है जब !
सच समझा देती है
बड़े हो गए हो अब !
लेकिन सच ,सचमुच
समझ नहीं आता है !
बूढ़े माँ- बाप को बच्चा
बेवकूफ़ बनाता है !
बस यहाँ मेरी बात
अब पूरी हो चुकी है !
बेवकूफ बनना मेरी
मज़बूरी हो चुकी है !
_____________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
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