कई बार लिखने को बहुत कुछ होता है / पर हम नहीं लिख पाते !
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गुलाबी कागज़ भी हो !
और रोशनाई भी हो !
दिल में ख़ुदा भी हो --
साथ खुदाई भी हो !
................................. पर फ़िर भी ....ख्याल / लफ्ज़ों की शक्ल नही ले पाते ...
------------ ऐसा / तब होता है जब बाहर का शोर , भीतर की आवाज़ नही सुनने देता !
................. ओह / सचमुच एकान्त बहुत ज़ुरुरी है ! सही कह गए हैं बुज़ुर्ग ------ भजन , भोजन , शयन , अध्ययन , चिन्तन / बिना एकान्त के नही किये जाने चाहिये !
---------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति
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