कुछ ... लिखूं मैं भी !
संसार की तस्वीर में ,
म्यान में, शमशीर में,
मन ... दिखूं मैं भी !
मुश्किलों में मुस्कराना !
जीवन के समर में ,
मन के व्याप्त डर में ,
नन्हा-सा दीपक जलाना !
प्रतिकूलता के प्रवाह में !
निकलूं अजाने सफ़र पे ,
और पालूं ,विजय डर पे ,
सकल्प साथ हैं ,चाह में !
रौशनी, दूर करती अँधेरा !
अंतिम प्रहर /फिर सवेरा !
-------------------------------- सॉनेट : डॉ.प्रतिभा स्वाति
संसार की तस्वीर में ,
म्यान में, शमशीर में,
मन ... दिखूं मैं भी !
मुश्किलों में मुस्कराना !
जीवन के समर में ,
मन के व्याप्त डर में ,
नन्हा-सा दीपक जलाना !
प्रतिकूलता के प्रवाह में !
निकलूं अजाने सफ़र पे ,
और पालूं ,विजय डर पे ,
सकल्प साथ हैं ,चाह में !
रौशनी, दूर करती अँधेरा !
अंतिम प्रहर /फिर सवेरा !
-------------------------------- सॉनेट : डॉ.प्रतिभा स्वाति
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