रविवार, नवंबर 17, 2013

मेरी ज़िन्दगी

 भोर के उन सुनहरे  ,
 नर्म उजालों की कसम !
साँझ  के सुरमयी  ,
रेशमी / उदास ,
खयालों की  कसम !

अय चांदनी रात ,
तेरे चाँद से पूछ ,
मेरी इबारतें यूँ / जो
चमचमाती  हैं !
उनमे सियाही/ उन
मावसी रातों की है  !
जिन्हें /  हर रोज़ ,
दिन में / हर 
शफ्फाक़ सुबह  में ,
जिया है मैने !

मेरे दिल में / जो
रौशनी है !
जानता है  ख़ुदा ,
जलाके / ख़्वाब 
अपनी ज़िन्दगी में ,
हरदम / यूँ ही ,
उजाला किया है मैंने !
-------------------------------- डॉ . प्रतिभा स्वाति

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