सोमवार, अगस्त 01, 2016

दम्भ ......






 सुना सबने  है ,पर    
     कौन  कहता  है ? 
कि  दम्भ  / सिर्फ़ 
इंसान  में  रहता है !

आज  अभी  की या,   
या  रोज़ की बात  है !
हवा /पानी  /धूप सब
 प्रकृति  की सौग़ात  है  ! 

बारिश  के  बाद  
मुस्कुराया सूरज  !
अलबत्ता  दो  दिन
बाद  आया  सूरज  !

बड़े  नेह से उसने ,
भेजा  ,धरा  की  ओर ! 
किरण  को थमाके,
 सुनहली धूप का  छोर!

पर  ये  क्या  ,अरे  
घूप  रुक  गई  है !
बेजान  इमारत  के , 
आगे  झुक  गई  है  !

इमारत  नहीं  ,दम्भ  है
 देखो ,तनके खड़ा  है !
आसमाँ  और  सूरज ,
क्या  दोनों  से  बड़ा  है ?

प्रकृति को  बेअदबी 
 मंज़ूर  नहीं  !
कोप /रोष - अंजाम 
वो  दिन  दूर  नहीं  !

इनसान  सब  जानता  है  
फिर  भी  वही  करता  है  !
कुदरत  ढाती  है  कहर ,
फ़िर  बेमौत  मरता  है  !
-------------------डॉ .प्रतिभा  स्वाति  





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