सुना सबने है ,पर
कौन कहता है ?
कि दम्भ / सिर्फ़
इंसान में रहता है !
आज अभी की या,
या रोज़ की बात है !
हवा /पानी /धूप सब
प्रकृति की सौग़ात है !
बारिश के बाद
मुस्कुराया सूरज !
अलबत्ता दो दिन
बाद आया सूरज !
बड़े नेह से उसने ,
भेजा ,धरा की ओर !
किरण को थमाके,
सुनहली धूप का छोर!
पर ये क्या ,अरे
घूप रुक गई है !
बेजान इमारत के ,
आगे झुक गई है !
इमारत नहीं ,दम्भ है
देखो ,तनके खड़ा है !
आसमाँ और सूरज ,
क्या दोनों से बड़ा है ?
प्रकृति को बेअदबी
मंज़ूर नहीं !
कोप /रोष - अंजाम
वो दिन दूर नहीं !
इनसान सब जानता है
फिर भी वही करता है !
कुदरत ढाती है कहर ,
फ़िर बेमौत मरता है !
-------------------डॉ .प्रतिभा स्वाति
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