तेरे मेरे दरमियाँ केवल , इक यकीन का रिश्ता था !
मत तोड़ना तू इसको , मैंने सौ बार कहा था !
यकीनन ये दीवार थी ,दरमियाँ मगर शीशे जैसी !
छू नहीं पाई तुझको , दिखता हर लम्हा था !
किसके कहने पर आख़िर , तुमने उठाया था पत्थर?
बेज़ार हुए हम दोनों , गया जमाने का क्या था !
क्या करना है मुझे , अब गुलाबी कागज़ लेकर !
टूट गया वो रिश्ता , जो दिल में महकता था !
झूठ को सच मानने वालों ,अब ख़्वाब नहीं देखूंगी !
दिल से आह तो निकलेगी , ज़ख्म जो गहरा था !
क्यूँ शोर है बरपा ? पूछें हैं लोग आपस में ,
अरे मर गया कैसे ? वो...वो जो तनहा था !
_________________________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
मत तोड़ना तू इसको , मैंने सौ बार कहा था !
यकीनन ये दीवार थी ,दरमियाँ मगर शीशे जैसी !
छू नहीं पाई तुझको , दिखता हर लम्हा था !
किसके कहने पर आख़िर , तुमने उठाया था पत्थर?
बेज़ार हुए हम दोनों , गया जमाने का क्या था !
क्या करना है मुझे , अब गुलाबी कागज़ लेकर !
टूट गया वो रिश्ता , जो दिल में महकता था !
झूठ को सच मानने वालों ,अब ख़्वाब नहीं देखूंगी !
दिल से आह तो निकलेगी , ज़ख्म जो गहरा था !
क्यूँ शोर है बरपा ? पूछें हैं लोग आपस में ,
अरे मर गया कैसे ? वो...वो जो तनहा था !
_________________________________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति
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