यदि हम खुदको ज़ाहिर न करें / तो क्या हो ? तब हमारी गणना सामान्य / सहज व्यक्ति के रूप में नहीं की जा सकेगी अर्थात तब असामान्य और विशिष्ट होने की मनोदशा तक पहुंचना मुमकिन है ! पर लाज़िमी नहीं :)
-------------------- मनोविज्ञान जब बखिया उधेड़ता है /तब ताने - बाने तार -तार हो जाते हैं ..... हर पहलू के सौ-सौ रुखसार ! कारण / लक्षण / परिणाम / रूप/भेद - मतभेद ..... अतीत - भविष्य सब !
जब भी इसका अध्ययन किया जाता है , चिन्तन अवश्यम्भावी है ... फ़िर क्रिया - प्रतिक्रिया !वही तो है अभिव्यक्ति .......
------------------------------- जारी ...
---------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति
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