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तेरे इरादे / तेरी लाचारियाँ ,
मैं, वाकिफ़ हूँ / सब ही से !
क़िस्से , नए गढ़ - गढ़ के ,
बता नहीं ........ तू मुझको !
देखती हूँ / रोज़ ही सपने ,
जागते और सोते हुए !
होते नहीं हैं सच ,
क्या पता नहीं मुझको ?
------------------------------------ डॉ.प्रतिभा स्वाति
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