शनिवार, मार्च 29, 2014

निगाहें ....

       

अब  छा  नहीं  पाती  / निराशा !
उजाला / चहुँ ओर करने लगी  हैं !

तमतमाने  लगा है / सूरज !
निगाहें  भोर करने लगी है !
----------------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति

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