फूल / ख़ुशबू !
रोज़ होते रूबरू !
ज्यूँ मैं और तू !
---------------------------------
आज या कल !
रोज़ की हलचल !
न हो विकल !
---------------------------------
---------------------------------
मै सोचती हूँ !
क्यूँ मैं चुप रहूँ ?
कहूँ न कहूँ !
-----------------------------------------------
देखा जाए तो लेखक बड़ा हो या छोटा !
वह सरोवर के किनारे मनसूबे बनाता वो नायक है / जिसकी लेखनी / कागज़ को तालाब समझके , बेताब हो उठती है / यूँ ही , शब्दों के कंकर उछलते है / अनायास !
----------------------
-- डॉ . प्रतिभा स्वाति
----------------------------------
रोज़ होते रूबरू !
ज्यूँ मैं और तू !
---------------------------------
आज या कल !
रोज़ की हलचल !
न हो विकल !
---------------------------------
---------------------------------
मै सोचती हूँ !
क्यूँ मैं चुप रहूँ ?
कहूँ न कहूँ !
-----------------------------------------------
देखा जाए तो लेखक बड़ा हो या छोटा !
वह सरोवर के किनारे मनसूबे बनाता वो नायक है / जिसकी लेखनी / कागज़ को तालाब समझके , बेताब हो उठती है / यूँ ही , शब्दों के कंकर उछलते है / अनायास !
----------------------
-- डॉ . प्रतिभा स्वाति
----------------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें