देखिये .....
क़िस्म - क़िस्म से ..
बंधे हुए हैं
हम
तिलिस्म से !
फूल - खुशबू
बहार से !
उम्र भर भ्रम
रिश्तों में ...
प्यार से !
आस्था ... ईश्वर
साकार ..या
निराकार से !
आडम्बर भी ...
अहंकार से !
अनुभूतियों से ...
अभिव्यक्ति से !
हाँ ... वही
मन और
ज़िस्म से .....
आजीवन ..तिलिस्म से !
देता है जन्म
वो ...
हरता है प्राण
वो ...
सब वही है
मगर
फ़िर भी वो
नही है पर ...
प्राण जब मुक्त
हो रहे बिदा
जहान से ...
आए तो उल्लास
जा रहे हो
अनजान से ...
जमीन से ...
आसमान से ..
विहान से ...
मान से ...
ध्यान से ...
रह गए वृथा
सम्बन्ध
सारे सर्वथा ...
प्राण - मुक्त
जिस्म से ....
हुए मुक्त
तिलिस्म से .....
__________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
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