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मृत्यु -पर्यन्त ,
निभाते साथ !
जीवन के
कड़वे यथार्थ !
मधुर -स्वप्न,
जिन तक
कभी....नहीं
पहुंचते हाथ !
निरन्तर ..
रहते साथ !
दो -धारी तलवार !
करती सतत वार !
पर .... फिर भी
स्त्री ....होकर मां !
लुटाती.... नेह
सारे ...जहां !
पत्नी..बहन.. बेटी
पुरुष को हमेशा
बस अपनाती है !
ख़ुशी से ...खोकर
ख़ुदको ...यूँ ही
जीवन सजाती है !
टूटते हैं .....
ख़्वाब !
बिन किये ....
आवाज़ !
चूड़ियाँ ख़ामोश !
पायल चुप !
उजाले गायब !
अँधेरा घुप !
मगर फ़िर.....
फ़िर से ...
समय...
लेता है
करवट !
शुरू होता है ..
शोर ...
फ़िर वही ...
खटपट !
वो भूल जाती है ...
सारे जख्मो-गम !
कहाँ से पाती है ...
कौनसा मरहम ?
लेकर ....नया रंग ,
आशाएं जगाती है !
सारी तकलीफें ..
कहाँ छुपाती है ?
अश्रु से .... कैसे ....
मोती बनाती है :)
________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति
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