शनिवार, मई 31, 2014

ज़ख्म..



  दिखता   लहू  लाल , 
  पर  ज़ख्म  हरा -सा ! 

अंधेरों  के  नसीब  में ,
कहाँ दिन सुनहरा -सा!
--------------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति

शुक्रवार, मई 30, 2014

यूँ हि कोई...

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रहमतें  तेरी / और गुरुर  है  मुझमें !
सच / तेरा ही तो /  नूर  है  मुझमें !

यूँ ही कोई ............खुदा नहीं होता !
ख़ास कुछ बात ......ज़ुरूर है तुझमें !
----------------------------------------- डॉ .प्रतिभा स्वाति
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मेरे पास भी ...कुछ यादें हैं / बस :)

   




 blog पर लॉक का प्रावधान होता है ! जिससे रचना को कॉपी पेस्ट से बचाया जा सके !कई writer , 'कॉपी राइट ' लिखकर सचेत करते हैं ! लेकिन स्निप शॉट --- लिये जाते हैं ! तब ... ? यदि विषय -वस्तु  out of screen दी जाए / तब ये सम्भावना 10 % शेष रह जाती है :)
---------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति

गुरुवार, मई 29, 2014

सॉनेट / परमेश्वर..



   शुरुआत में ,गीतात्मकता और वर्ण संतुलन के मद्देनज़र -------- मेरा fvrt सॉनेट :)

बुधवार, मई 28, 2014

साँझ..


     
मुझको तो .... दिखती  उदास !
तू ,कहता ......साँझ सिंदूरी है !

सूरज के संग ........... डूब गई !
क्या उसकी ......... मज़बूरी है ?
-------------------------------------- डॉ . प्रतिभा स्वाति

शुक्रवार, मई 23, 2014

सच ....


  सच  एक / मगर  दिखते  दो  हैं !
  एक तेरा है............. एक मेरा है ,
 जीवन ..................रैन बसेरा है ,
  जाते   हैं  सब  /  आते  जो  हैं !..... सच एक मगर ....

-------------------------------- डॉ . प्रतिभा स्वाति


बुधवार, मई 21, 2014

सॉनेट / ॐ (1 चतुष्पदी )



 स्वर्ग -नर्क /सब  झांसे  हैं /समझाकर !
सम्बल / विकट  घड़ी में / जीवन की ,
कमज़ोर नहीं /मन की डोर/ रेशम की ,
ये काया / प्रभु  की माया /ॐ जपाकर !
-------------------------------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति

सोमवार, मई 19, 2014

सॉनेट / 7 कुछ उपयोगी तथ्य

 1------------ शेक्सपियर के सॉनेट अष्टपदी और षष्टपदी के बजाय तीन चतुष्पदियों और एक द्विपदी लय से बँधे हैं। भले शेक्सपियर के समकालीनों ने सॉनेट लिखे हों पर सॉनेट को साहित्यिक गरिमा शेक्सपियर ने ही दी है। सॉनेट संगीतज्ञ रोजेटी ने कहा ---- कोई भी सॉनेट परिपूर्ण है यदि उसे शेक्सपियर ने रचा है।

2--------------हिन्दी में सॉनेट बीसवीं सदी में आया। इसे हिन्दी के कुछ कवियों ने अपनाया। पर वह इनके कविता कर्म के केन्द्र में नहीं रहा। त्रिलोचन / इसके अपवाद रहे !

3-----------   सॉनेट रचना की चार कोटियाँ निर्धारित की जा सकती हैं-
1. पेट्रर्कन
2. स्पेन्सरियन
3. शेक्सपीरियन
4. मिल्टानिक

4 --------- इटली में प्रमुखतः सॉनेट के पाँच रूप भेद मिलते हैं-/ इस तरह के सॉनेट हिंदी में नहीं                       लिखे गए !
5------- सॉनेट को विशेष रूप से तीन आयामों में देखा-परखा गया है-
1. आकृति की विशिष्टता
2. भाव की विशिष्टता के साथ वैयक्तिक अभिव्यक्ति।
3. सर्वांगपूर्णता, कल्पना, प्रेरणा और माधुर्य।

6 ------ सॉनेट का वास्तविक स्वरुप तेरहवीं शती के मध्य में प्रकट हुआ । इस अवधि की कविताएँ इटली के मिलान शहर में संग्रहीत की गयी हैं ।  इन्हें इटली के अनेक प्राचीन कवियों ने रचा है ।


7 -----सॉनेट-इटेलियन शब्द sonetto का लघु रुप है । यह धुन के साथ गायी जाने वाली कविता है। ऐसी छोटी धुन जो मेण्डोलिन या ल्यूट (एक प्रकार का तार वाद्य) पर गायी जाती है। सॉनेट का जन्म कहाँ हुआ, यह कहना अनिश्चित-सा है । पर कुछ शोधकर्त्ताओं का यह मानना है कि सॉनेट ग्रीक epigram (सूक्तियों) से जन्मा होगा, लेकिन इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं किया जाता। प्राचीन काल में epigram का उपयोग एक ही विचार या भाव को अभिव्यक्त करने के लिए होता था । कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इंग्लैण्ड और स्कॉटलैण्ड में प्रचलित बैले से पहले भी सॉनेट का अस्तित्त्व रहा है।
------------------------------------------------------------------   सम्पादन : डॉ. प्रतिभा स्वाति 

रविवार, मई 18, 2014

सॉनेट / मैं भी...

 कुछ ... लिखूं मैं भी !
संसार  की तस्वीर में ,
म्यान में, शमशीर में,
मन ... दिखूं  मैं भी !

मुश्किलों में मुस्कराना !
जीवन  के  समर  में ,
मन के व्याप्त  डर में ,
नन्हा-सा दीपक जलाना !

प्रतिकूलता  के प्रवाह में !
निकलूं अजाने  सफ़र पे ,
 और पालूं ,विजय डर पे ,
सकल्प साथ  हैं ,चाह में !

 रौशनी, दूर करती अँधेरा !
अंतिम प्रहर /फिर सवेरा !
-------------------------------- सॉनेट : डॉ.प्रतिभा स्वाति

शुक्रवार, मई 16, 2014

मेरी डायरी से ....


 चढ़ रही थी धूप ------------------------- त्रिपाठी ' निराला '

गर्मियों के दिन,

दिवा का तमतमाता रूप

उठी झुलसाती हुई लू

रुई ज्यों जलती हुई भू

गर्द चिनगी छा गई

प्रायः हुई दुपहर

वह तोड़ती पत्थर!
------------------------------------------ ( पूरी कविता में / मुझे ये अंश ---- मुझे / जब -तब याद आता है )




           आज मन किया कुछ / समीक्षा की जाए :)
फिर मन किया / कोई  व्यंग्य लिखा  जाए .....
फिर सोचा / अधूरी  रचनाओं को पूरा कर लिया जाए !
यूँ कई माह हो गए / कोई कहानी नहीं लिखी मैंने !
तो क्या मैं कोई कहानी लिखूंगी ?
               वैसे / कभी भी खुदसे ,सवाल  नहीँ पूछने चाहिये ! जब खुदकी  फटकार पड़ती है , तब कोई बचाने नहीं आता .......और चल पड़ती है कलम / बेसाख्ता ...यूँ ही ...
----------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति

सोमवार, मई 12, 2014

गुलमोहर


------------ गुलमोहर ( चोका )--------------

 
   गुलमोहर !
   उठ  गया सोकर !
    देखती रही ,
  मैं भी , ख़ुश होकर !
   शहर  नया !
अज़नबी हैं सब !


मित्र -बन्धु -बांधव
 ,कोई न जब !
यहाँ  नहीं पराया !
अपनापन !
पाया / सब खो कर !
गुलमोहर !
पास / दूर होकर !
ख़ुश हूँ मैं / बोकर !
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-------------------------------- --------   डॉ . प्रतिभा स्वाति

रविवार, मई 11, 2014

चित्र / मित्र


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 सच / कहूँ तो !
चित्र / विचित्र हैं !

रिझाते  हैं / कभी 
उकसाते हैं .......
जाने क्या - क्या ,
कह जाते हैं !

कई बार / हम 
कहते हैं / अपने गम !

और / कई बार /ये काम ,
ये / चित्र कर जाते हैं !
जब / उनमें / आपके ,
रंग / भर जाते हैं !

कई बार/ चित्र , 
शब्द हो जाते  हैं !
कहानी बन जाते हैं !

उनकी / चुम्कीय शक्ति ,
खीचती है / अपनी ओर !
महीन - सी........... डोर !
जिसका....ओर न छोर !

चित्र - शब्द / शब्द -चित्र !
ओह ! मेरी / अभिव्यक्ति !
क्यूँ ..... इतनी नाकारा है  ?
कई बार ...... स्वीकारा है !

अनुभूति ...... खामोश है !
सब ........... मेरा दोष है ! 

 लिखने पे / खुलासा होता है !
अनचाहा / अनकहा  भी !
लिखने का ......... अंदाज़ !
चित्र / कई बार / छुपाते हैं ,
हलके रंगों में / गहरे राज़  !

थोड़े में कहूँ / या ज्यादा में !
बात / कह नहीं पाती हूँ !
और कहे बिना........ जब ,
 मैं..........रह नहीं पाती हूँ !

तब खोजती हूँ / निगाहों से ,
अपने....... परम -मित्र को  !
अभिव्यक्ति  में  माहिर,
अनुकूल ........... चित्र  को !
--------------------------------- डॉ . प्रतिभा स्वाति
     




शनिवार, मई 10, 2014

बचपन




 गुड्डे -  गुड़िया !
खेले  थे घर - घर !
अब गया बिसर !

बीतें जो पल !

वो यादें बनकर !
छा जाएँ मन पर !
----------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति 

शुक्रवार, मई 09, 2014

क्यूँ...



    मज़ह्बों  के  ........... कुएँ  !
ख़ुद रही हैं ...........खाइयाँ !
भाई.......... भाईचारा  तजें !
क्यूँ /बदनाम हैं भौजाइयां ?

--------------------  डॉ . प्रतिभा स्वाति

बुधवार, मई 07, 2014

रिश्ते ...



 अगर    खुशबू / नहीं  होती !
 तो  फूल / मुस्कुरा  पाता ?




अगर / न  होती  किरण !
तो /अँधियारा मिट  जाता ?

होती नहीं / बूंदें  अगर !
समन्दर  /कैसे इतराता ?

शब्द की / सामर्थ्य सिर्फ़ ,
अर्थ ही / है  समझाता :)

बात / रिश्तों का संदर्भ है !
काश /इंसान निभा पाता !
----------------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति

अकेलापन

  
अकेलापन  !
जब तुझसे  बांटा !
घटा  सन्नाटा !
-------------------------- हाईकू : डॉ. प्रतिभा स्वाति

मंगलवार, मई 06, 2014

gm / :)

                हट गए आसमां से ,
रात के काले  साए !
              पूरब में , क्षितिज पर ,
आके सूरज , मुस्काए !
.
.
.
---------------- डॉ. प्रतिभा स्वाती

गुरुवार, मई 01, 2014

ज़मी को ...

 ज़मीं  को / नाज़  है  बेहद :)
अपने / नीले आसमां  पर !

कभी चांदनी / ओढ़ाता  है :)
कभी /  धूप  की  चूनर  :)
-----------------------------  डॉ. प्रतिभा  स्वाति