"कविता "
बनती है तो ,
बनती है !
नहीं बनती तो ,
नहीं बनती !
कवि ,होता है ,
क्षुब्ध ...
तो होता रहे !
होता है क्रुद्ध ,
तो होता रहे !
चाहे ले ले
कागज़ ...
सफ़ेद या गुलाबी !
कलम में सियाही
लाल -नीली -काली !
बैठा रहे भले ,
भूखा या प्यासा !
कितना ही झुंझलाए ,
हो जाए उदास !
तो होता रहे ,
रोता रहे !
उठा ले सांचा ,
सम्वेदनाओं का !
पीर के पहाड़ ,
ढेर वेदनाओं का !
ढलती है तो ,
ढलती है !
नहीं तो नही
ढलती .... "कविता "
कई बार ,
पुकारा है !
जाने कितनी बार ,
हारा है !
पगली ....
कवि ,तुम्हारा है !
आखिर कवि ,
थक ही तो जाता है !
खुल जाती हैं ,
भींची हुई मुट्ठियाँ !
झपक जाती हैं ,
बोझिल पलकें !
तब यकबयक ,
बेधड़क !
तोड़ देती है तंद्रा !
आ जाती है ,
कविता ... लिखो !
अब मचलती है !
मुस्कुराता है कवि !
कलम सम्हलती है !
ठहर जाता है वक्त !
कविता जब चलती है !
मुश्किल से पलती है !
_____________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
बनती है तो ,
बनती है !
नहीं बनती तो ,
नहीं बनती !
कवि ,होता है ,
क्षुब्ध ...
तो होता रहे !
होता है क्रुद्ध ,
तो होता रहे !
चाहे ले ले
कागज़ ...
सफ़ेद या गुलाबी !
कलम में सियाही
लाल -नीली -काली !
बैठा रहे भले ,
भूखा या प्यासा !
कितना ही झुंझलाए ,
हो जाए उदास !
तो होता रहे ,
रोता रहे !
उठा ले सांचा ,
सम्वेदनाओं का !
पीर के पहाड़ ,
ढेर वेदनाओं का !
ढलती है तो ,
ढलती है !
नहीं तो नही
ढलती .... "कविता "
कई बार ,
पुकारा है !
जाने कितनी बार ,
हारा है !
पगली ....
कवि ,तुम्हारा है !
आखिर कवि ,
थक ही तो जाता है !
खुल जाती हैं ,
भींची हुई मुट्ठियाँ !
झपक जाती हैं ,
बोझिल पलकें !
तब यकबयक ,
बेधड़क !
तोड़ देती है तंद्रा !
आ जाती है ,
कविता ... लिखो !
अब मचलती है !
मुस्कुराता है कवि !
कलम सम्हलती है !
ठहर जाता है वक्त !
कविता जब चलती है !
मुश्किल से पलती है !
_____________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
कविता जब चलती है !
जवाब देंहटाएंमुश्किल से पलती है ! vaaaaaaaaaaaH ....
Thank you Ashok sir
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