सोमवार, अक्टूबर 15, 2018

पगली ....कवि तुम्हारा है :)

 "कविता "
बनती  है  तो ,
बनती  है !
नहीं  बनती तो ,
नहीं बनती !

कवि  ,होता  है  ,
क्षुब्ध ...
तो  होता रहे !
होता  है क्रुद्ध ,
तो  होता  रहे !

चाहे  ले ले 
कागज़ ...
सफ़ेद या  गुलाबी !
कलम में सियाही 
लाल -नीली -काली !

बैठा  रहे  भले ,
भूखा  या  प्यासा !
कितना  ही झुंझलाए ,
हो  जाए  उदास !
तो  होता  रहे ,
रोता  रहे !

उठा  ले  सांचा ,
सम्वेदनाओं  का !
पीर  के  पहाड़ ,
ढेर  वेदनाओं  का !
ढलती  है तो ,
ढलती  है !
नहीं  तो नही 
ढलती .... "कविता "

कई  बार ,
पुकारा  है !
जाने  कितनी  बार ,
हारा है !
पगली ....
कवि  ,तुम्हारा  है !

आखिर  कवि ,
थक  ही तो  जाता है !
खुल  जाती  हैं ,
भींची  हुई  मुट्ठियाँ !
झपक जाती हैं ,
बोझिल पलकें !

तब  यकबयक ,
बेधड़क !
तोड़  देती  है तंद्रा !
आ जाती है ,
कविता ... लिखो !

अब  मचलती  है !
मुस्कुराता  है कवि !
कलम सम्हलती  है !
ठहर  जाता  है वक्त !
कविता जब  चलती है !
 मुश्किल से पलती है !
_____________________  डॉ .प्रतिभा  स्वाति

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