चल रहा है
सतत
मोह -माया से
विरत
पीछे न देखा
मुड़कर कभी
देखा नहीं
जुड़कर कभी
तुम अमर
नश्वर सभी
श्राप या वर
सोचा कभी ?
बलवान तुम
कमज़ोर जग
चलते सतत
थकते न पग ?
कर लिया
इतना सफ़र
मंज़िल नहीं
कोई मगर
दिखते नहीं
रुकते नहीं
तुम कौन हो ?
क्यूँ मौन हो ?
किस श्राप से
चल रहे हो ?
कौनसा वर ?
अटल रहे हो
सुनकर मुझे
क्यूँ हंस रहे हो ?
मेरे समक्ष
विवश रहे हो
गति में ,समय
तुमसे बड़ी हूँ
मैं ध्वनि हूँ
आगे खड़ी हूँ :)
______________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
सतत
मोह -माया से
विरत
पीछे न देखा
मुड़कर कभी
देखा नहीं
जुड़कर कभी
तुम अमर
नश्वर सभी
श्राप या वर
सोचा कभी ?
बलवान तुम
कमज़ोर जग
चलते सतत
थकते न पग ?
कर लिया
इतना सफ़र
मंज़िल नहीं
कोई मगर
दिखते नहीं
रुकते नहीं
तुम कौन हो ?
क्यूँ मौन हो ?
किस श्राप से
चल रहे हो ?
कौनसा वर ?
अटल रहे हो
सुनकर मुझे
क्यूँ हंस रहे हो ?
मेरे समक्ष
विवश रहे हो
गति में ,समय
तुमसे बड़ी हूँ
मैं ध्वनि हूँ
आगे खड़ी हूँ :)
______________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
🙏 मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है 🙏
जवाब देंहटाएंगति में ,समय
जवाब देंहटाएंतुमसे बड़ी हूँ
मैं ध्वनि हूँ
आगे खड़ी हूँ :) ...मैं प्रकाश हूँ ... ध्वनि से भी आगे खड़ा हूँ :)
Han sach
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