____________" मुझे , वो याद आने लगे हैं " की व्याख्या करनी चाहिए ? मैं ये नहीं लिख सकती का कारण बताना चाहिए ? या सीधे कहनी पर आ जाना चाहिए कि मैं अब इस ब्लॉग पर haikubazi या छुटपुट कविताई नहीं करुँगी :)
___________ भले मेरी टाइपिंग कि स्पीड कम है . मुझे typ करना उबाऊ लगता है ( जो कि एक writer के हित में नहीं है ) पर अब जब 3 साल होने आए ब्लॉग पर तब मुझे इस सबसे कतराना ठीक नहीं लगता .वरना जाने कब ईद मन जाए , .....ब... की मां ज्यादा दिन खैर नहीं मना सकती ( मेरे मुस्लिम भाई मुझे मुआफ़ करेंगे , अल्ला कसम मैं अपने रास्ते जा रही हूँ बस मिसाल के तौर पर हवाला दिया है )
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मोक्ष
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नींद खुलते ही कुछ ख़्वाब पलकों की किनारों से छिटककर नज़दीक ही मुडेर पर जा बैठे और मुझे देखकर मुस्कुराने लगे ..........मैं अब भी सोच में हूँ ...आख़िर रात सपने में क्या देखा था !
कोई था जो मुझे जगा रहा था ! कोई तो था ..... कौन मुझे लेकर कलम गुदगुदा रहा था ........ सियाही के वो छींटे शायद अब भी बांह पर हों .... मैंने देखा हाथ तो साफ़ थे ! हथेली एकदम ख़ाली .... हाँ ,कुछ रेखाएं ,इधर- उधर आ - जा रही थीं !
मैं कबसे इन रेखाओं को ........इन्द्रधनुष की शक्ल देना चाहती हूँ ! जब हथेली पर इन्द्रधनु हो ....तब अँगुलियों की पोरों पर ,शंख या चक्र नहीं , इनकी जगह पर सूरज - चाँद होना चाहिए ! पूरा आसमान मैं अपनी मुट्ठी में चाहती हूँ ? मन ठठा पड़ा जैसे मुझ ही पर ! और .......मुंडेर पर बैठा ख़्वाब भी खिलखिला पड़ा .
अर्रर्रे हाँ ! यही तो देखा था ,कल रात सपने में......कितनी ख़ुश थी मैं........सचमुच , कुछ ख़्वाब ,यूँ ही चले आते हैं ...... खुशियाँ लेकर ! मैंने इस बार वहां मुंडेर की तरफ़ मुस्कुराके देखा , ख़्वाब ग़ायब था . उसकी जगह बैठी हक़ीकत मुझे चिढ़ा ही रही थी समझो .उफ़ !!
हक़ीकत और कर भी क्या सकती है ...तीख़ी - कड़वी - बेमज़ा - बदज़ायका - बेमुलाहिज़ा !! मैंने घूरकर उसे देखा तो उसने भी मुझे ......ज़ाहिर है वही रिस्पोंस दिया :) तब मैंने आँखे बंद कर लीं , फ़िर से . मैं अब ....अभी जागना नहीं ,सोना चाहती हूँ . मुझे ये हक़ीकत बिल्कुल पसंद नहीं ........ जब देखो , हाथ धोकर ख़्वाबों के पीछे पड़ी रहती है .
ना मैं इस यथार्थ से डरती या घबराती नहीं हूँ .ना ही उसे कुसूरवार ठहराने की हिमाक़त कर रही हूँ . पर इसका मुक़ाबला करके अघा चुकी हूँ . न वो जीतती है न मैं हारती हूँ .......
इतने सारे शर -सद्र्श कंटक !! क्या मै भीष्म हूँ ? अगर होती .....तब भी मैं शरशैया पर प्राण ना त्यागती ...... मुझे इच्छा मृत्यु का वरदान यूँ विस्मृत ना होता .... मोक्ष तो अभीप्सित रहता ही खैर ........
मान लो मैं हूँ ....... उस शैय्या पर भीष्म नहीं .....तब मुझे मंजूर होता इंतज़ार ....युद्ध - विराम का .... अरे ! प्रॉपर ट्रीटमेंट अनिवार्य था ....... विजय के बाद क्या फर्ज़ - फ़राइज़ यूँ खत्म हुआ करते हैं ?
राम की जलसमाधि या कृष्ण का व्याघ्र से ..... या सीता का धरती में समा जाना समझ में आता है ............ पर भीष्म .... पितामह .....सातवें देव .....गंगा - पुत्र ...... यूँ ,प्राणत्याग ? नहीं ....
हाय विधाता मुझे दो ये वरदान ..... मै आत्महत्या के खिलाफ़ हूँ .अरे ये ज़ुर्म है ..... कायरता है .... पलायन है ..... जीवन का अपमान है .... कर्तव्यों को पीठ दिखाना उचित नहीं .... आजीवन कर्तव्यों का निर्वाह करूंगी ईमानदारी से ..... पर मुझे चाहिए " मोक्ष " इस धरती की आबादी अब सरकार के नियंत्रण में नहीं ....... विधाता अब बंद करो ये ............ पुनर्जन्म का सिलसिला ! हर मरने वाले को मिले मोक्ष ................ और हमे मिले उनका आशीर्वाद ....आजीवन .....
--------------------------( पितृ - पक्ष पर हर पितृ - पूर्वज को समर्पित )
________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति