शुक्रवार, सितंबर 16, 2016

हमेशा ...जमाना ही क्यूँ बदलता है ?

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        परिस्थियाँ  बदलती  हैं ....धीरे -धीरे ! इतनी  धीरे कि इस  बदलाव  से हम  बिल्कुल अनभिज्ञ रहते हैं . फ़िर  पचास  साल बाद ....अचानक भौचकिया  जाते  हैं ...ये सब कब कैसे हुआ ? इसका ना तो जवाब होता है ना उस जवाब  का  कोई मतलब ! यानी  अहमियत या  महत्व !
_______________ और हम  तमाम  सवालों पर  विराम  लगाने  की  नाकामयाब  कोशिश करते  हैं , अपने आपको  ख़ुद तक के आगे  पाक-दामन ज़ाहिर  करने के लिए , बड़ी संजीदगी  से हर  ज़माने  में एक  पचास- साला  प्रौढ़  ये  कहता  मिला है  इतिहास की  किताबों  में कि .........'.ज़माना  बदल  गया है "
___________ हमे  कोई उनसे  ये पूछकर  बताए कि  ज़माना  यूँ ही बदल गया ? बिना  कुछ किये ? जीहाँ  , "बिना  कुछ किये"  यही  इस सवाल  का जवाब  है . यदि  हमने  कुछ  नहीं  किया तो ज़माना  यूँ  ही  बदलता  रहेगा ! इसे  अब  रोकना होगा ! और  कितना बदलना  है ? यदि  बदलाव के मायने चरित्र  का हनन है . मूल्यों  का अवमूल्यन  है . 
______________ यदि  बदलाव  का मतलब दुराचार है . गैरज़िम्मेदारी  है . स्वाभिमान का तिरोहित हो जाना है . सम्वेदना  का भूखा  रहना और रिश्तों  का  ज़लील होना  है . पैसे के पीछे भागना है . गलतियों के लिए दूसरों को ज़िम्मेदार  ठहराना है . उफ़ ! ये अंतहीन  फ़ेहरिस्त .... अब बस ! हमें उस जुमले पे अमल नही करना कि ज़माना .... हमें आज से अभी से उस कल के लिए कुछ करना होगा .... मैं  नहीं चाहती कि अब ज़माना और बदले . बहुत तो बदल गए ! 
___________ बदलाव आए तो बेहतरी के लिए ! सुख -समृद्धि -संतोष के लिए ! बदलाव अनुकरणीय हो , जिसपर हम नाज़ कर सकें और गर्व से कह सकें कि --------------------------------------------------- " जमाना  बदल गया है "
______________ डॉ. प्रतिभा स्वाति

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