जानी -मानी राइटर - कवियत्री - डेंटिस्ट ---------- my dtr ---------------Dr . prarthana pandit
बुधवार, अक्टूबर 31, 2018
Good morning MP.DD MADHYAPRADESH
जानी -मानी राइटर - कवियत्री - डेंटिस्ट ---------- my dtr ---------------Dr . prarthana pandit
बुधवार, अक्टूबर 17, 2018
समय के साथ .....
चल रहा है
सतत
मोह -माया से
विरत
पीछे न देखा
मुड़कर कभी
देखा नहीं
जुड़कर कभी
तुम अमर
नश्वर सभी
श्राप या वर
सोचा कभी ?
बलवान तुम
कमज़ोर जग
चलते सतत
थकते न पग ?
कर लिया
इतना सफ़र
मंज़िल नहीं
कोई मगर
दिखते नहीं
रुकते नहीं
तुम कौन हो ?
क्यूँ मौन हो ?
किस श्राप से
चल रहे हो ?
कौनसा वर ?
अटल रहे हो
सुनकर मुझे
क्यूँ हंस रहे हो ?
मेरे समक्ष
विवश रहे हो
गति में ,समय
तुमसे बड़ी हूँ
मैं ध्वनि हूँ
आगे खड़ी हूँ :)
______________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
सतत
मोह -माया से
विरत
पीछे न देखा
मुड़कर कभी
देखा नहीं
जुड़कर कभी
तुम अमर
नश्वर सभी
श्राप या वर
सोचा कभी ?
बलवान तुम
कमज़ोर जग
चलते सतत
थकते न पग ?
कर लिया
इतना सफ़र
मंज़िल नहीं
कोई मगर
दिखते नहीं
रुकते नहीं
तुम कौन हो ?
क्यूँ मौन हो ?
किस श्राप से
चल रहे हो ?
कौनसा वर ?
अटल रहे हो
सुनकर मुझे
क्यूँ हंस रहे हो ?
मेरे समक्ष
विवश रहे हो
गति में ,समय
तुमसे बड़ी हूँ
मैं ध्वनि हूँ
आगे खड़ी हूँ :)
______________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
सोमवार, अक्टूबर 15, 2018
पगली ....कवि तुम्हारा है :)
"कविता "
बनती है तो ,
बनती है !
नहीं बनती तो ,
नहीं बनती !
कवि ,होता है ,
क्षुब्ध ...
तो होता रहे !
होता है क्रुद्ध ,
तो होता रहे !
चाहे ले ले
कागज़ ...
सफ़ेद या गुलाबी !
कलम में सियाही
लाल -नीली -काली !
बैठा रहे भले ,
भूखा या प्यासा !
कितना ही झुंझलाए ,
हो जाए उदास !
तो होता रहे ,
रोता रहे !
उठा ले सांचा ,
सम्वेदनाओं का !
पीर के पहाड़ ,
ढेर वेदनाओं का !
ढलती है तो ,
ढलती है !
नहीं तो नही
ढलती .... "कविता "
कई बार ,
पुकारा है !
जाने कितनी बार ,
हारा है !
पगली ....
कवि ,तुम्हारा है !
आखिर कवि ,
थक ही तो जाता है !
खुल जाती हैं ,
भींची हुई मुट्ठियाँ !
झपक जाती हैं ,
बोझिल पलकें !
तब यकबयक ,
बेधड़क !
तोड़ देती है तंद्रा !
आ जाती है ,
कविता ... लिखो !
अब मचलती है !
मुस्कुराता है कवि !
कलम सम्हलती है !
ठहर जाता है वक्त !
कविता जब चलती है !
मुश्किल से पलती है !
_____________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति
बनती है तो ,
बनती है !
नहीं बनती तो ,
नहीं बनती !
कवि ,होता है ,
क्षुब्ध ...
तो होता रहे !
होता है क्रुद्ध ,
तो होता रहे !
चाहे ले ले
कागज़ ...
सफ़ेद या गुलाबी !
कलम में सियाही
लाल -नीली -काली !
बैठा रहे भले ,
भूखा या प्यासा !
कितना ही झुंझलाए ,
हो जाए उदास !
तो होता रहे ,
रोता रहे !
उठा ले सांचा ,
सम्वेदनाओं का !
पीर के पहाड़ ,
ढेर वेदनाओं का !
ढलती है तो ,
ढलती है !
नहीं तो नही
ढलती .... "कविता "
कई बार ,
पुकारा है !
जाने कितनी बार ,
हारा है !
पगली ....
कवि ,तुम्हारा है !
आखिर कवि ,
थक ही तो जाता है !
खुल जाती हैं ,
भींची हुई मुट्ठियाँ !
झपक जाती हैं ,
बोझिल पलकें !
तब यकबयक ,
बेधड़क !
तोड़ देती है तंद्रा !
आ जाती है ,
कविता ... लिखो !
अब मचलती है !
मुस्कुराता है कवि !
कलम सम्हलती है !
ठहर जाता है वक्त !
कविता जब चलती है !
मुश्किल से पलती है !
_____________________ डॉ .प्रतिभा स्वाति