शनिवार, जुलाई 29, 2017

मैं बीच की कड़ी हूँ .....

 मैं बस  यूँ ही ...
दरमियान  खड़ी  हूँ !
इधर माँ ,उधर  बेटी 
मैं बीच में खड़ी हूँ !


यहाँ  मैं माँ  हूँ ....
बेटी  नहीं  हूँ !
बेटी होकर देखूं ..
तब  माँ   नहीं हूँ !


जबसे  माँ   नहीं  हैं ...
मैं  बेटी  नहीं  हूँ  !
 पूछती  हूँ  खुदसे  ...
मैं हूँ ? या  नहीं  हूँ !

 माँ  और  बेटी ...
बेटी  और माँ  !
बिछुड़ना  नियति ...
रो रहा  आसमां !
__________________ डॉ . प्रतिभा स्वाति 

मंगलवार, जुलाई 18, 2017

ज़िन्दगी ....





 ज़िन्दगी ... तू  
मिली  ...सबको 
रही ... साथ 
पर .... तुझे  
मिला कुछ  नहीं ..... !

सबसे ... मिले 
शिकवे ...गिले 
चिरन्तन ... चले 
यही .... सिलसिले 

शब्द ... ख़ामोश 
अर्थ .... मौन 
बोलता  रहा कौन .... !

रहे ख़ुद .... अनजान से 
वंचित .... पहचान से 
कौन......  रहा - गुजरा 
सदा ..... दरमियान से 
 आए सभी ...... फ़िर 
उठ गए  जहान  से ...... !
ख़ुद से  अनजान  से ....!
________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति



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