रविवार, अक्टूबर 16, 2016

लिख देती हूँ ......


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 मन जब रोता है !
तोड़ देती हूँ रीत ! 
लिख देती हूँ ,
ख़ुशी का गीत !


लिखना  ज़ुरूरी है !
दिखना ज़ुरूरी है !

कौन रूठों को 
अब मनाता है ?



आप लिखें वेदना 
और... बिचारा पाठक 
वाह -वाह कर जाता है !
दोष उसका नहीं ,वो 
शिष्टाचार निभाता है !

कोई अशिष्ट नहीं ,
मेरे आसपास !
पर सभी अज़नबी 
न मोह ,न आस !

भीड़ में हूँ 
मगर हूँ तो तन्हा 
घर में रहूँ 
या यहाँ वहां 

ख़ुशी बंट जाती है 
यूँ ही हंस-हंस 
गम कौन लेता है 
दो तो ख़ुशी बस 

मै मनाती हूँ, अब 
दर्द का उत्सव 
दीवारें चुप रहेंगी !

कान होते हैं 
बिना मुहं के 
 वे कैसे कहेंगी ?

घर मुझे अक्सर
समझाता  है 
मुझे कुछ -कुछ
समझ आता है 

जिन्हें तुम बेजान 
कहते हो 
वो सब चीज़ें बोलती हैं
बात करती हैं _____
जब रोती हूँ ,तब 
भीगता है तकिया 
बंद हो जाता है 
दरवाज़ा !
नहीं हिलते परदे !
चूल्हा  नहीं जलता !
संगीत सिसकता है !
पौधे तब मुझसे 
नहीं मांगते पानी !

ये दरो दीवार 
आह भरते हैं 
वाह -वाह नही करते !
तुम जीवंत ये निर्जीव !

 वेदना को अब सहारा नहीं ,
 एक माकूल जगह चाहिए ?

_______________________ डॉ.प्रतिभा स्वाति

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