शनिवार, फ़रवरी 21, 2015

महकती है ....मेरी किताब

  

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किताबों में छुपे
फूल / अब तलक 
मुरझा गए होंगे !

उड़ गई होगी 
सारी खुशबू !

भूल गई होंगी 
पंखुड़ी हंसना !

पर वो यादें और 
कुछ वादे अब भी 
ज्यों के त्यों 
बंद हैं / उसमें !


आज / मुक्त करूं
उस फूल को 
इस किताब से !
उन यादों को ,
अपनेआप से !

यकबयक 
 खुली किताब 
हर / शब्द 
फूल बन गया !
ज़माना / क्या 
 फ़िर बदल गया ?

पहले / फूल 
शब्द हो जाते थे !
अब / शब्द 
फूल बन जाते हैं !

फूल और शब्द
इक-दूसरे के हैं
पूरक  /अपनी बात
कहते हैं / हंसकर !
महककर !

 जो भी हो 
मेरी किताब 
महकती है हरदम !
भूलकर हर सितम !
_____________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति

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