शनिवार, फ़रवरी 21, 2015

मन मौन है ...


 _____________________ शरीर विज्ञान कहता है कि - मानव शरीर में  'मन' नाम का कोई अवयव नहीं , जबकि मानव तो मन के बिना कुछ भी नहीं , ये कहता है मनोविज्ञान :)
______________ हर बात का आधार जब तर्क हो / प्रमाण हों / साक्ष्य - सुबूत हों / सर्वे हों और कसौटी से निष्कर्ष निकले हों तब .....तब ? इस तब का जवाब उतना कठिन भी नहीं :) पर क्षण भर का मौन सोचने के लिए विवश करता है कि क्या मन हमेशा यूँ ही छुपकर 
मानव को अपने इशारों पर चलाता रहेगा ? इसे नियंत्रित करना क्या बहुत दुष्कर हैं ?
_________________ गीता के छठे अध्याय में बेसाख्ता अर्जुन अपनी विवशता का इज़हार , कृष्ण से कर ही बैठे - 'चंचलं ही , मन : कृष्ण .... वायोरिव च दुष्कृताम !
___________ जो भी हो मन है :)
_____________ डॉ. प्रतिभा स्वाति

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें