रविवार, सितंबर 14, 2014

स्त्री....



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मृत्यु -पर्यन्त ,
निभाते साथ !
जीवन के 
कड़वे यथार्थ !

मधुर -स्वप्न,
जिन तक
 कभी....नहीं
 पहुंचते हाथ !
निरन्तर ..
रहते  साथ !

दो -धारी तलवार !
करती सतत वार !


पर .... फिर भी
 स्त्री ....होकर मां !
लुटाती.... नेह 
सारे ...जहां !

पत्नी..बहन.. बेटी
पुरुष को हमेशा 
बस अपनाती है ! 
ख़ुशी से ...खोकर 
ख़ुदको ...यूँ ही 
जीवन   सजाती  है !

टूटते  हैं .....
ख़्वाब !
बिन किये ....
आवाज़ !

चूड़ियाँ ख़ामोश !
पायल चुप !
उजाले  गायब !
अँधेरा घुप !

मगर फ़िर.....
 फ़िर से ...
समय...
 लेता है 
करवट ! 
शुरू होता है ..
शोर ...
फ़िर वही ...
खटपट !

वो भूल जाती है ...
सारे जख्मो-गम !
कहाँ से पाती है ...
कौनसा मरहम ?

लेकर ....नया रंग ,
आशाएं  जगाती है !
सारी  तकलीफें ..
कहाँ  छुपाती है ?
अश्रु से .... कैसे .... 
मोती  बनाती  है :)


________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति


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