गुरुवार, फ़रवरी 13, 2014

खुले क़िताब तब ....

 
      जब  भी खुली !
 यादों की  क़िताब !
कुछ  फूल हंसे,
उड़ी  खुशबू ,
महका  मन !

और  / मै / फिर से ,
कल के लिए ,
हर पल के लिए !
पोंछकर / अश्क ,
बो देती हूँ , इरादे !
कुछ हसीन  वादे !

आज की क़िताब ,
कल / खुले जब !
महके फिर  मन !
हंसे  /आंगन !
------------------------- डॉ. प्रतिभा स्वाति 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें