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सोमवार, फ़रवरी 10, 2014
दर्द..
सबके अपने ज़ख्म / अपने मरहम हैं ! हर किसी के दामन् में / खुशियाँ कम हैं ! लहलहाता दरख्त / कल दोपहर ही कटा है ! देखिये दूब की आँखों से /बह रही शबनम है ! --------------------------------- डॉ . प्रतिभा स्वाति
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