बुधवार, जनवरी 15, 2014

धुंध


इस  सर्द सुबह को ,
हो न हो / शिकायत 
 पर / अचंभा तो है !

चांदी पे वर्क / सोने का !
ये चलन है / या 
ज़ुरूरत / या के बेबसी !
चाहे दिखावा / दम्भ ,
जो भी हो / होता आया है !

पर देखोना / कोहरे का करम !
इनायतें / ओस के मोती !
बिखरी है......... शबनम !

बादल से छनती / वो ,
चंचल / सुनहरी किरण !
उसपे / क़ुदरत ने धुंध की,
चुनर/ यूँ ओढ़ाई  है ,
जैसे / जानबूझकर ,
सोने पे / चांदी की ,
वर्क............. चढ़ाई है !
--------------------------------- डॉ . प्रतिभा स्वाति

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें