मंगलवार, जनवरी 21, 2014

3 हाइकू

     फूल / ख़ुशबू !
  रोज़  होते रूबरू !
    ज्यूँ मैं और तू !
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आज या कल !
रोज़  की हलचल !
न हो विकल !
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मै सोचती हूँ !
क्यूँ मैं चुप रहूँ ?
कहूँ न कहूँ !
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                        देखा जाए तो लेखक बड़ा हो या छोटा !
वह  सरोवर के किनारे मनसूबे  बनाता वो नायक है / जिसकी  लेखनी / कागज़ को तालाब समझके , बेताब हो उठती है / यूँ ही , शब्दों के कंकर उछलते है / अनायास !
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-- डॉ . प्रतिभा स्वाति
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