आग
जंगल में लगी थी ...
देख रहे थे
तमाशाई सब !
उड़ तो गए पंछी
सभी ... पर
झुलस गए पेड़
जल गए घोसले
मर गए चूज़े !
दिशाहीन दौड़
जंगली जानवरों को
थकाकर मार गई
सबको ... और
लपटें छूती रहीं
आसमान को !
बच गए चाँद तारे
दूर बसे लोग
नदी -तालाब -झरने
हवा बहती रही !
फिर ?
आग बुझ गई ?
राख हो गया सब ?
लोगों ने क्या किया ?
आग लगी कैसे थी ?
कब की बात है ये ?
अरे ! ये क्या !
राजन भूल गए
उन्हें चुप रहना है !
हमेशा सवाल
वेताल करता है
आज उसीसे पूछ बैठे ?
बेताल झाड़ पर
फिर उल्टा लटक गया
उसने दु:खी होकर कहा
राजन .....आग
बस्ती में फ़ैल गई ...
कुछ जलके मर गए ...
कुछ भाग गए
और कुछ
आग बुझाने में लग गए !
आग बुझ तो गई पर
बुझाने वाले
कुछ जलकर
कुछ थककर
कुछ प्यास से
मर रहे हैं ... अब भी ...
------------------------------ दोस्तों ये आग १३४७ के प्लेग की हो या १९१८ के इन्फ्लुएंजा की या फिर 2020 के कोरोना की ...... बुझना तय है ! हम कितना नुकसान उठाएंगे ...कैसे भरपाई करेंगे ये सब सवाल वक्त के उस तरफ हैं ! इधर हम और आप हैं . हम कौन हैं ,किनमे से हैं ,क्या चाहते हैं और क्या योगदान है हमारा ?
ये योगदान वाले सवाल पार "यदि हम मौन है तो हमें ये चुप नहीं तोड़नी चाहिए.... जब तक कि आग पर काबू ना पा लिया जाए "
____________________________________ डॉ.प्रतिभा स्वाति
जंगल में लगी थी ...
देख रहे थे
तमाशाई सब !
उड़ तो गए पंछी
सभी ... पर
झुलस गए पेड़
जल गए घोसले
मर गए चूज़े !
दिशाहीन दौड़
जंगली जानवरों को
थकाकर मार गई
सबको ... और
लपटें छूती रहीं
आसमान को !
बच गए चाँद तारे
दूर बसे लोग
नदी -तालाब -झरने
हवा बहती रही !
फिर ?
आग बुझ गई ?
राख हो गया सब ?
लोगों ने क्या किया ?
आग लगी कैसे थी ?
कब की बात है ये ?
अरे ! ये क्या !
राजन भूल गए
उन्हें चुप रहना है !
हमेशा सवाल
वेताल करता है
आज उसीसे पूछ बैठे ?
बेताल झाड़ पर
फिर उल्टा लटक गया
उसने दु:खी होकर कहा
राजन .....आग
बस्ती में फ़ैल गई ...
कुछ जलके मर गए ...
कुछ भाग गए
और कुछ
आग बुझाने में लग गए !
आग बुझ तो गई पर
बुझाने वाले
कुछ जलकर
कुछ थककर
कुछ प्यास से
मर रहे हैं ... अब भी ...
------------------------------ दोस्तों ये आग १३४७ के प्लेग की हो या १९१८ के इन्फ्लुएंजा की या फिर 2020 के कोरोना की ...... बुझना तय है ! हम कितना नुकसान उठाएंगे ...कैसे भरपाई करेंगे ये सब सवाल वक्त के उस तरफ हैं ! इधर हम और आप हैं . हम कौन हैं ,किनमे से हैं ,क्या चाहते हैं और क्या योगदान है हमारा ?
ये योगदान वाले सवाल पार "यदि हम मौन है तो हमें ये चुप नहीं तोड़नी चाहिए.... जब तक कि आग पर काबू ना पा लिया जाए "
____________________________________ डॉ.प्रतिभा स्वाति
बाबा रे
जवाब देंहटाएंकितने साल बाद
आप दिखी..
मैं तो सोच रही थी कि
एक और ब्लॉग शहीद हो गया
आते रहिएगा
सादर
जी दोनों ब्लॉग नि:संक्रमित और स्वस्थ हैं :) हम कभी आपको ...कभी ख़ुदको ....कभी ब्लॉग को यूँही देखते रहेंगे !
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअवश्य .... बहुत आभार साझा किया आपने !
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०९-०५-२०२०) को 'बेटे का दर्द' (चर्चा अंक-३६९६) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
इस इनायत के लिए तहेदिल से शुक्रिया
हटाएंबहुत ही सारगर्भित रचना प्रतिभा जी.
जवाब देंहटाएंबड़ा सवाल हमारे सामने खड़ा है और उसके उत्तर में बस हमें स्वयं को समेटे हुए चुपचाप सही समय का इंतजार करना है।क्योंकि उत्तर उसी के पास है।हमें केवल उसका सहयोग करना है।
जी ! इस इंतजार को खत्म होना चाहिए .... आभार .
हटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया :)
जवाब देंहटाएं" एक गंभीर प्रश्न " ये आग कब बुझेगा कैसे बुझेगा और कितना खाक कर के जाएगा ,बेहतरीन सृजन ,सादर नमस्कार आपको
जवाब देंहटाएंनमस्कार .... शुक्रिया .... आभार , कामिनी जी
हटाएंआग बुझ तो गई पर
जवाब देंहटाएंबुझाने वाले
कुछ जलकर
कुछ थककर
कुछ प्यास से
मर रहे हैं ... अब भी
सही कहा किसी तरह आग बुझ भी जाये तो भी बुझाने वाले ही स्वाहा हो जायेंगे इसमें
बहुत सुन्दर लाजवाब सृजन
वाह!!!
बहुत आभार सुधा जी
हटाएंआ डॉ प्रतिभा स्वाति जी, आपकी कविता आज के समय के अनुकूल है। रहस्यात्मक अंदाज में आपने इस त्रासदी की और इंगित किया। यह आग तो सदियों से लगती रही है।..
जवाब देंहटाएंआग बुझ तो गई पर
बुझाने वाले
कुछ जलकर
कुछ थककर
कुछ प्यास से. --ब्रजेन्द्र नाथ
शुक्रिया सर
हटाएंसटीक।
जवाब देंहटाएंखुद लगाई आग और खुद ही जल गये।
आभार :)
हटाएंप्रतिभा जी कहाँ हो आप ? कितने दिनों से दिख नहीं रहीं आप | कृपया अपनी कुशलता का समाचार दें }
जवाब देंहटाएंमैं ठीक हूं.... अब मुलाकात होती रहेगी आपसे.... मुझे याद रखने के लिए शुक्रिया रेणु जी
जवाब देंहटाएं